पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३४२

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वृहदारण्यकोपनिषद् स० अधिक पूछ । अन्यथा-नहीं तो। ते-तेरा । मूर्धा-मस्तक । व्यपत्तत्-गिर पड़ेगा । अनतिप्रश्न्याम्-जो देवता श्रति प्रश्न किये जाने योग्य नहीं है । देवताम्-उस देवता के प्रति । अतिपृच्छसिम्बारम्बार तू पछती है। गार्गि हे गागि! । इति= इस प्रकार । मामत । अतिप्राक्षी-अधिक पछ । ततः ह- तव । वाचक्नवीनचक्नु की कन्या । गार्गी-गार्गी । उपरराम: चुप हो गई। भावार्थ। जब कहोल चुप हो गया तब उसके पीछे श्रीमती ब्रह्म- वादिनी वाचक्नवी गार्गी याज्ञवल्क्य महाराज से प्रश्न करने लगी, हे याज्ञवल्क्य ! जो यह सब वस्तु दिखाई देती है, वह जल में ओत प्रोत है यानी जिस प्रकार कपड़े में ताना वाना सूत एक दूसरे से प्रथित रहते हैं वैसे ही सब जल में दृश्य. मान पदार्थ प्रथित हैं, ऐसा शास्त्र कहता है, श्राप कृपा करके बतलाइये कि वह जल किस में श्रोत प्रोत हैं । याज्ञवल्क्य इसके उत्तर में कहते हैं, हे गार्गि ! वह जल वायु में ओत प्रोत हैं, हे याज्ञवल्क्य ! वायु किसमें ओत प्रोत है, हे गार्गि ! वह वायु अन्तरिक्षलोक में श्रोत प्रोत है, हे याज्ञवल्क्य ! अन्तरिक्षलोक किममें ओत प्रोत है, हे गार्गि ! वह अन्त- रिक्षलोक गन्धर्वलोक में ओत प्रोत है,हे याज्ञवल्क्य ! गन्धर्व- लोक किसमें ओत प्रोत है, हे गागि ! वह गन्धर्वलोक 'आदित्यलोक में ओत प्रोत है, हे याज्ञवल्क्य ! आदित्यलोक किसमें ओत प्रोत है, हे गार्गि ! वह आदित्यलोक चन्द्रलोक में ओत प्रोत है, हे याज्ञवल्क्य ! वह चन्द्रलोक किसमें श्रोत प्रोत है, हे गार्गि ! वह चन्द्रलोक नक्षत्रलोक में ओत प्रोत