पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४०५

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अध्याय ३ ब्राह्मण ९ अध्यर्द्ध नाम करके कहते हैं, अध्यर्द्ध दो शब्दों से मिलकर बना है, अधि ऋद्धि अधि का अर्थ आधिक्य है और ऋद्धि का अर्थ वृद्धि है, चूंकि वायु करके सबकी वृद्धि होती है इसलिये वायु को अध्यर्द्ध नाम से कहा है, फिर विदग्ध पूछते हैं कि, हे याज्ञवल्क्य ! वह एक देवता कौन है जिसको आपने पहिले कहा था, उस पर याज्ञवल्क्य कहते हैं, हे विदग्ध ! वह एक देवता प्राण है, वहीं प्राणं ब्रह्म है ऐसा लोक कहते हैं, इस मन्त्र में त्यत् शब्द का अर्थ तत् है यानी जो तत् है वही त्यत् है ॥ ६ ॥ मन्त्रः १० पृथिव्येव यस्यायतनमग्निर्लोको मनो ज्योतिर्यो वै । पुरुषं विद्यात्सर्वस्यात्मनः परायण स वैवेदिता स्यात् । याज्ञवल्क्य वेद वा अहं तं पुरुपछ सर्वस्यात्मनः परा- यणं यमात्थ य एवायछ शारीरः पुरुषः स एष वदैव शाकल्य तस्य का देवतेत्यमृतमिति होवाच ॥ पदच्छेदः। पृथिवी, एव, यस्य, आयतनम् , अग्निः, लोकः, मनः, ज्योतिः, यः, वै, तम् , पुरुषम् , विद्यात् , सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , सः, वै, वेदिता, स्यात् , याज्ञवल्क्य, वेद, वा, अहम् , तम् , पुरुषम् , सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , यम्, आत्थ, यः, एव, अयम् , शारीरः, पुरुषः, सः, एषः, वद, एव, शाकल्य, तस्य, का, देवता, इति, अमृतम्, इति,ह, उवाच ॥