पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४२९

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अध्याय ३ ब्राह्मण १ ४१५ श्रप्सु-जल में स्थित है । इति=ऐसा । + श्रुत्वा-सुन कर । + शाकल्यःमशाइल्य ने। + प्राह पूछा कि । प्राप: जल । कस्मिन्-किस में प्रतिष्ठिताः स्थित है । नु-यह मेरा प्रश्न है । इति-इस पर+यामवल्ल्या याज्ञवल्क्य ने।+अाह-उत्तर दिया किरतसिम्बार्य में स्थित है। इति इसके बाद । +शाकल्या शाकल्य ने। + आह-पूछा कि । रेतः वीर्य । कस्मिन्-किस में। प्रतिष्टितम् स्थित है। नु यह मेरा प्रश्न है । इति इस पर I + याज्ञवल्स्यः याज्ञवल्क्य ने । श्राह-कहा कि । हृदये इति-हदय में स्थित है। अपि-ौर । तस्मात्-उसी हृदय से। जातम् पैदा हुये पुत्र को । अनुरूपम्-पिता के सदृश । आहुः- कहते हैं। हि-क्योंकि । हृदयात् एव हृदय से हो । सृप्तः पुत्र निकला है। हृदयात् एव हृदय से ही। निर्मित:निर्माण हुधा है 1 + च-और । हृदये हृदय में। एव-ही। रेतः वीर्य । प्रतिष्ठितम्-स्थित । भवति-रहता है। इति-ऐमा । श्रुत्वा- मुन कर । शाकल्यः-शाकल्य ने। श्राहकहा । याज्ञवल्क्य- है याज्ञवल्क्य !। एतत्-यह । एवम् एव-ऐसाही है जैसा तुम कहते हो। भावार्थ। शाकल्य ने पूछा कि तुम पश्चिम दिशा में किस देवता को प्रधान मानते हो ? याज्ञवल्क्य ने कहा वरुणदेवता को प्रधान मानता हूं, शाकल्य ने पूछा वह वरुणदेवता किसमें स्थित है, इस पर याज्ञवल्क्य ने कहा वह जल विपे स्थित है, ऐसा सुनकर शाकल्य ने पूछा जल किसमें स्थित है याज्ञ वल्क्य ने उत्तर दिया वीर्य में स्थित है, फिर शाकल्य ने वीर्य किसमें स्थित है, याज्ञवल्क्य ने कहा वीर्य हृदय