पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४३७

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अध्याय ३ ब्राह्मण १ ४२३ अशीर्यः क्षयरहित है। हिक्योंकि । न शीर्थते-नहीं क्षीण किया जा सकता है। + सा-वह । असङ्गःसङ्गरहित है। हि-क्योंकि। स: वह । न-नहों । सत्यते संग किया जा सकता है। + सावह । असितः बन्धन रहित है। हि-क्योंकि । सम्म वह । न-नहीं। व्यथते-पीड़ित हो सका है। च-और । नन्न । रिष्यति-नष्ट हो सका है। शाकल्य-हे शाकल्य !। अष्टो-पाठ ! आयतनानि स्थान पृथ्वी आदि हैं। अष्टौ-पाठ। लोकाः लोक अग्नि आदि हैं। अष्टौ-माठ । देवा देव अमृत आदि हैं । अष्टौ-आठ । पुरुषा:=पुरुष :शरीर प्रादि हैं। साम्सो। यः जो कोई । तान्-उन । पुरुषान-पुरुषों को। निरुह्य- जानकर । + च-और । प्रत्युद्ध-अपने अन्तःकरण में रखकर । अत्यकामत्-अतिक्रमण करता है। तम्-उस । औपनिषदम् पुरुषम्-उपनिषत्सम्बन्धी तत्त्ववित्पुरुष को जानाति जानता है। पृच्छामि मैं पूछता हू।चेत्-अगर । तम्-उसको । मे मुझसे । नम्न । विवक्ष्यसि कहेगा तू तो। ते-तेरा । मूर्धा-मस्तक । विपतिष्यति-सभा में गिर जायगा। शाकल्याशाकल्य । तम्-उस पुरुष को । न-नहीं । मेने-जानता भया।+ तस्मात् इसलिये । तस्य-उसका । मूर्धामस्तक । हसबके सामने । विपपात-गिर पड़ा। अपि ह-और । अस्य-उसकी । अस्थीनि- हड्डियां यानी मृतक शरीर को। अन्यत्-और कुछ । मन्यमानाः समझते हुये । परिमोषिणः चोर। अपजह : लेकर भाग गये। भावार्थ। शाकल्य ने फिर पूछा आप और आपका आत्मा यानी हृदय किसमें स्थित है ? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया प्राण में, फिर शाकल्य ने पूछा प्राण किसमें स्थित है ? याज्ञवल्क्य ने कहा