पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४६१

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अध्याय ४ ब्राह्मण १ ४४ आह, अद्राक्षम्, इति, तत्, सत्यम्, भवति, चतुः, वै, सम्राट्, परमम्, ब्रह्म, न, एनम्, चक्षुः, जहाति, सर्वाणि, एनम्, भूतानि, अभिक्षरन्ति, देवः, भूत्वा, देवान्, अपि, एति, यः, एवम्, विद्वान्, एतत्, उपास्ते, वस्त्यृषभम्, सहसम्, ददामि, इति, इ, उवाच, जनकः, वैदेहः, सः, ह, उवाच, याज्ञवल्क्यः, पिता, मे, अमन्यत, न, अननुशिष्य, हरेत, इति ॥ श्रन्धय-पदार्थ । याज्ञवल्क्यः याज्ञवश्य ने । पप्रच्छ-जनक से पूछा कि । यत्-जो कुछ । कश्चित्-किसी प्राचार्य ने । ते-आप से। अत्रवीत्कहा । तत्-उसको । वाम-मैं सुनना चाहता है।+जनका अनक ने ।+ आइ कहा । वाणः वृष्णाचार्य के पुत्र । वर्षाः अर्कु प्राचार्य ने । मे मुझसे । अब्रवीत् कहा है कि। चनाम्नेत्र । वै-ही। ब्रह्म-ब्रह्म है। इति इस पर । याज्ञवल्क्या-ग्राज्ञवल्क्य ने । उवाच-कहा । यथा-जैसे । शिष्याय-शिष्य के लिये । मातृमान् पितृमान् श्राचार्यवान्- पिता, गुरु करके सुशिक्षित पुरुप । ब्रूयात-उपदेश करता है। तथा तैसेही । वार्णः बर्ड्स ने। अब्रवीत्-मापसे कहा कि । तत्वह । ब्रह्म-या। चक्षुः नेन । चैत्रही है। हि-क्योंकि । अप- ग्यतः नेत्रहीन पुरुष को । किम्-क्या । स्यात्-लाभ हो सकता है। याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य । + पुनः फिर ।+ पप्रच्छ-पूछते भये कि । तेश्राप से । तस्य-उस ब्रह्म के । आयतनम्-धाश्रय को। च-और । प्रतिष्ठाम्-प्रतिष्ठा को। अब्रवीत्-वर्षा ने कहा है। जिनका जनक ने I + आह-उत्तर दिया कि । मे मुझसे । नम्नहीं । अनवात् कहा है । + याज्ञवल्क्य याज्ञवल्क्य ने । माता,