पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४७७

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अध्याय ४ नाहग १ शायरन मापसे । तस्य-उसमस के । अायततम्यायतन और । प्रनिष्टाम्प्रति को भी। अचवीत-चिदम्य ने कहा, है । + जनकाानक ने। + श्राद-कहा । याज्ञवल्क्य के याज- परम ! । मन-मुगले नहीं । श्रवनीत कहा है । इति इस पर 1 + यायल्स्यः प्राज्ञवल्क्य ने । श्राह-कहा। सम्राट हजनक! पनत्य प्रस की उपासना । एकपाद-एक चरण- पाली है। इतिस पर 1 +जनका जनक ने। पाहकहा। चानवरस्य-गायलम! सः +त्वम्-शापड़ी। तत्-उस उपासना कोन हमसे नदिको। +याशवल्स्या याज्ञवल्क्य ने । श्राहा । हृदयम्-हदय । पव-भी। आयतनम् । श्राकाशपरमारमाही प्रतिष्ठा प्राश्रय है। एनत्- पE I स्थितिः स्थिति है यानी परम स्थान है। इति- प्रेमी। एनतम हदयस्थ ग्रह की । उपासीत-उपासना करे । सम्रादनक ने । उवाच-कहा। याज्ञवल्क्य-हे याज्ञवल्क्य ! । स्थितना-स्थिति । काग्या वस्तु है । याज्ञवल्क्या याज्ञवल्क्य ने। उवाचस्का । सम्राट हे राजन् !। हृदयम्-हृदय । एवमी। + एतस्य हमको। + स्थितता स्थिति है। हिं गोंकि सम्राट् हे राजन् !। सर्वेपाम् सब । भूतानाम्- प्राणियों का { पायतनम् स्यान ! हृदयम् हृदय है । सम्राट न ! हदयम् महदय । चैदी। सपाम्-सब । भूता- नाम-प्राणियों का । प्रतिष्ठा प्राश्रय है । हिं-क्योंकि । सम्राट जनक ! । सर्वाणि सब । भूतानि प्राणी । हृदये हृदय में । एबी । प्रतिष्ठिनानि-स्थित । भवन्ति हैं। सम्राट है नका!! हृदयमा हृदय। वैनिस्सन्देह । परमम्-परम । ब्रह्म है।यागो । एवम इस प्रकार । विद्वान-शानता हुश्रा। एतत् इस ग्रह की उपास्त-उपासना करता है । एनम्-इसको।