पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६०१

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अध्याय ४ ब्राह्मण ५. ५८७ अपने जीवात्मा के लिये लोगों को लोक प्यारे होते हैं, हे मैत्रेयि ! देवताओं की कामना के लिये लोगों को देवता प्यारे नहीं होते हैं, परन्तु अपने जीवात्मा के लिये देवता लोगों को प्यारे होते हैं, हे मैत्रेयि ! प्राणियों की कामना के लिये प्राणी प्यारे नहीं होते हैं परन्तु अपने जीवात्मा की कामना के लिये लोगों को प्राणी प्रिय होते हैं, हे मैत्रेयि ! सबकी कामना के लिये सबको सब पारे नहीं होते हैं परन्तु अपने जीवात्मा की कामना के लिये सबको सब प्यारे होते हैं, अरे हे मैत्रेयि! यही अपना जीवात्मा देखने योग्य है, मनन करने योग्य है, श्रवण करने योग्य है, ध्यान करने योग्य है, हे मैत्रयि ! जीवात्मा के देखे जाने पर सुने जाने पर, मनन किये जाने पर यह सारा ब्रह्माण्ड मालूम होजाता है ॥ ६ ॥ मन्त्रः ७ ब्रह्म तं परादायोऽन्यत्रात्मनो ब्रह्म वेद क्षत्र तं परा- दायोऽन्यत्रात्मनः क्षत्र वेद लोकास्तं परादुर्योऽन्यत्रात्मनो लोकान्वेद देवास्तं परादुर्योऽन्यत्रात्मनो देवान्वेद वेदांस्तं परादुर्योऽन्यत्रात्मनो वेदान्वेद भूतानि तं . परादुर्योऽन्य- त्रात्मनो भूनानि वेद सर्व तं परादाद्योऽन्यत्रात्मनः सर्व वेदेदं ब्रह्मेदं क्षमिमे लोका इमे देवा इमे वेदा इमानि भूनानीदछ सर्वं यदयमात्मा ।। पदच्छेदः। ब्रह्म, तम्, परादात्, यः, अन्यत्र, आत्मनः, ब्रह्म, क्षत्रम् , तं, परादात्, यः, अन्यत्र, आत्मनः, क्षत्रम् , वेद, वेदः