पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६४३

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. अध्याय ५ ब्राह्मण १० ६२१.. . भक्षित अन्न पच जाता है, . उस वैश्वानर अग्नि का घोर शब्द शरीर में हुआ करता है, जब पुरुष हाथ लगाकर दोनों कानों को ढकता है, तब उसके अन्तर के शब्द को सुनता है, और जब वह मरने पर होता है तब नहीं सुनता है, वैश्वानर अग्नि एक प्रकार का सामर्थ्य है, जिस करके शरीर की स्थिति बनी रहती है, जैस इस शरीर में वैश्वानर अग्नि रहता है, वैसेही इस ब्रह्माण्डरूपी महान् शरीर विषे वैश्वानर सर्वव्यापी परमात्मा होकर संपूर्ण जगत् की स्थिति का कारण होता है ॥ १ ॥ इति नवमं ब्राह्मणम् ॥ ६॥ अथ दशमं ब्राह्मणम् । मन्त्र: १ यदा चै पुरुपोऽस्माल्लोकात्मैति स वायुमागच्छति तस्मै स तत्र विजिहीते यथा रथचक्रस्य खं तेन स ऊर्ध्वमाक्रमते स आदित्यमागच्छति तस्मै स तत्र विजि- हीते यथा लम्बरस्य खं तेन स ऊर्ध्वमाक्रमते स चन्द्र- मसमागच्छति तम्मै स तत्र विनिहीते यथा दुन्दुभेः खं तेन स ऊर्ध्वमाक्रमंते सलोकमागच्छत्यशोकमहिमं तस्मि- मन्वसति शाश्वतीः समाः॥ इति दशमं ब्राह्मणम् ॥१०॥