पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६५५

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'अध्याय ५ ब्राह्मण १३ ६४१ वद ॥ r 8 1 मन्त्रः ३ 'सामं प्राणो वै साम पाणे हीथानि सर्वाणि भूतानि सम्यश्चि सम्यश्चि हास्मै सर्वाणि भूतानि औष्ठयाय कल्पन्ते साम्नः सायुज्यछ सलोकतां जयति य एवं वेद् ॥ पदच्छेदः। सांम, प्राणः, वै, साम, प्राणे, हि, इमानि, सर्वाणि, भूतानि, सम्यञ्चि, सम्यञ्चि, ह, अस्मै, सर्वाणि, भूतानि, श्रेष्ठयाय, कल्पन्ते, साम्नः, सायुज्यम् , सलोकताम् , जयति, यः, एवम्, अन्वय-पदार्थ । हि-क्योंकि । इमानि-ये । सर्वाणि-सब । भूतानि-प्राणी । वै निश्चय करके । प्राणेन्माण में ही। सम्यश्चि-संयुक्र ...होते हैं। + अतः इसी कारण । प्राण:-प्राणही। साम-साम है। साम-साम की । +यःमो। उपासोत-उपासनाप्राण जान कर करे । अस्मै स. उपासक की सेवा के लिये । सर्वाणि= सत्र । भूतानि-प्राणी । सम्यञ्चि-उद्यत होते हैं। चम्और । ह-निश्चय करके । + तस्य-उस उपासक की । श्रेष्ठयाय, श्रेष्ठता के लिये । कल्पन्ते तयार होते हैं। यो उपासक । एवम् ऐसा । वेद-जानता है । +सा वह । साम्ना साम के । सायुज्यम् सायुज्यता को ! + च-और । सलोकताम्-., सालोक्यता को । जयति प्राप्त होता है। भावार्थ । प्राण ही साम है, सामपद का अर्थ सामवेद नहीं है, म " .