पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/६८५

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अध्याय ६ ब्राह्मण १. ६७१ --- अन्वय-पदार्थ। ते हवे वाणी श्रोत्र मन नादि इन्द्रियां ।+ च-और । इमे प्राणा: ये पांचो प्राण। अहंश्रेयसे-आपस में कहने लगे "हमही श्रेष्ठ हैं, हमही श्रेष्ठ हैं"। विवदमानाः + सन्तः ऐसा. बाद विवाद करते हुये । ब्रह्म-ब्रह्मा के पास.। जग्मुः गये । ह=और । + गत्वा-जाकर । तत् :उंस ब्रह्मा से यानी प्रजापति से । ऊचु:कहा कि । न हम लोगों में । कास्कीन । वसिष्ठः इति श्रेष्ट है:इस पर । तत् वह प्रजापति । हस्पष्ट । उवाचन कहता भया कि । व-तुम लोगों के मध्य में । यस्मिन्-जिसके । उत्क्रान्ते + सति-निकल जाने पर-। इदम्-इस । शरीरम्- शरीर को । पापीयः-पापिष्ठ । + लोकालोकमन्यते माने। सा=बह ही । वास्तुम लोगों में । वसिष्ठः इति श्रेष्ठ है। भावार्थ । हे सौम्य ! इन्द्रियों में कौन श्रेष्ठ है ? इस बात के जानने के लिये आगे कहते हैं कि किसी समय में वाणी, श्रोत्र, नेत्र, मन, प्राण आदि इन्द्रियों में झगड़ा पैदा हुआ, और आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि हमी श्रेष्ठ हैं, हमी श्रेष्ठ हैं ऐसा वाद विवाद करते हुये ब्रह्माजी के पास गये और वहां जाकर कहा कि आप निर्णय करदें कि हम लोगों में कौन श्रेष्ठ है ? इस पर प्रजापति ने कहा कि तुम लोगों के मध्य में वही श्रेष्ठ है जिसके निकल जाने पर यह शरीर पापिष्ठ कहलाता है ॥ ७॥ मंन्त्रः वाग्योचक्राम सा संवत्सरं प्रोष्याऽऽगत्योवाच कथम- मशकत् मदृते : जीवितुमिति ते होचुर्यथाऽकला अवदन्तो