पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७१

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अध्याय १ ब्राह्मण ३ . प्लुपिणा, समः, मशकेन, समः, नागेन, समः, एभिः, त्रिभिः, लोकैः, समः, अनेन, सर्वेण, तस्मात् , वा, एव, साम, अश्नुते, साम्नः, सायुज्यम् , सलोकताम् , यः, एवम् , एतत् , साम, वेद ॥ अन्वय-पदार्थ । उ.-और । एप:-यही मुख्य प्राण । एव-निश्चय करके । साम-साम है । + प्रश्ना=प्रश्न । + कथम् कैसे । वाक् चै- वाणी निश्चय करके । साम-साम । भवति हो सकता है। + उत्तरम्-उत्तर क्योंकि । सा-स्त्रीलिंगमात्र । च-और । अमः- पुल्लिगमात्र । + एतो ये दोनों । एप: यह मुख्य प्राण । इति +कथ्यते करके कहे जाते हैं यानी दोनों लिंगों में प्राण की स्थिति समानरूप से है । तत्-सोई । साम्नः-साम का । सामत्वम्-सामत्व है । यानी साम शब्द का अर्थ है । उ-ौर । यत्-जिस कारण । एव-निश्चय करके । + सा=वह प्राण । प्लुपिणा-कीट के आकार के । समःबराबर है । मशकेन% मच्छर के शरीर के। समाबरावर है। नागेन समः-हाथी के शरीर के बराबर है। + चोर । एभिः हन । त्रिभिोकैः- तीनों लोकों के । समा बराबर है । तस्मात्-तिसी कारण । अनेन इनही । सर्वण-सव कहे हुये के। समाबरावर । साम-साम है। यःजो उपासक । एतत्-इस । साम-साम को । एवम्-इस प्रकार । वेद मानता है यानी उपासना करता है। + सम्वह । सास्त:साम की । सायुज्यम्-सायुज्यता को। सलोकताम्सालोक्यता को। वा एव-अवश्य । अश्नुते- प्राप्त होता है। भावार्थ । हे सौम्य ! यही मुख्य प्राण सामवेद भी है, प्रश्न होता