पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७३४

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७२० बृहदारण्यकोपनिषद् २० करके । मन्ये मन्य में । संन्नवम्बचे हुये घृन को । श्रवन यति डालता जाय । सोमाय स्वाहा-सोन के लिये पाहुति देता है। इति-ऐसा । + उक्त्वामह कर । अग्नी-अग्नि में। हुत्वा होम करके । मन्ये मन्य में 1 संबवम्चे हुये वृन को। अवनयति-डालता जाय । भृःस्वाहा पृथिवी के लिये आहुति देता है। इति ऐमा । उक्या कह कर । अग्नौ- अग्नि में । हुत्वा-होम करके । मन्ये मन्य में । संन्त्रवम् बचे हुये घृत को। अवनयति-दालता जाय । भुवः स्वाहा भुवोंक के लिये प्राहुति देता है। इति-पेसा । उपत्वा: कह कर । अग्नौ-अग्नि में । हुत्वा-होम करके । संन्नवम् बचे हुये घृत को । मन्धे-मन्य में । अवनयति-दालता जाय । स्वः स्वाहा-स्त्रः के लिये भाहुति देता है । इति-ऐसा। + उक्त्वा-कह कर । अग्नी-पग्नि में । हुत्या होन करके । मन्थे-मन्य में । संन्त्रवम्बचे हुये घृत को ! अवनयति छोड़ता जाय । भूः भुवः स्वः स्वाहा इन तीनों के लिये आहुति देता हूँ। इति ऐसा। उक्त्वा कह कर । अग्नी अग्नि में। हुत्वा-होम करके । मन्ये मन्ध में । संघवम् यचे । अवनयति डालता जाय । ब्रह्मणे स्वाहा-यल के लिये पाहुति देता है । इति-ऐसा । + उक्त्वाकहकर । अग्नी-ग्नि में । हुत्वाम्होन करके । मन्थे-मन्य में। संत्रवम्बचे हुये घृन को । श्रवनयति-दालता क्षत्राय स्वाहाक्षत्र के लिये माहुति देता हूँ । इति-ऐसा।

  • उक्त्वा-कह कर । अग्नौ-अग्नि में । हुत्वा-होम करके ।

मन्थे-मन्य विपे । संनवम्बचे हुये घृत को । अवनयति डालता जाय । भूताय स्वाहाम्भूत के लिये माहुति देता हूं। इतिऐसा । + उस्वा-कह कर । अग्नी-अग्नि में। %3D हुये घृत को जाय।