पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/७९१

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अध्याय ६ ब्राह्मण ४ ७७७ . - पदच्छेदः। अथ, एनम् , मात्रे, प्रदाय, स्तनम् , प्रयच्छति, यः, ते, स्तनः, सशयः, यः, मयोभः, यः, रत्नधाः, वसुवित्, यः, सुदत्रः, येन, विश्वा, पुष्यसि, वार्याणि, सरस्वति, तम् , इह, धातवे, कः, इति ॥ अन्वय-पदार्थ। अथ तत्पश्चात् । + स्वास्थम्-अपनी गोद में रक्खे हुये । .एनम् उस बालक को । मा-माता के प्रति । प्रदाय-देकर । स्तनम् उसको स्तन । प्रयच्छति-प्रदान करे । एवम्ब्रुवन्- यह कहता हुधा कि । सरस्वतिहे सरस्वति !। याजो। ते-तेरा । सशयः सफल । स्तना स्तन है। याजो। मयोभूः= प्राणियों के पालनार्थ हुआ है । यःजो स्तन । रत्नधा=दुग्ध- धारक है । यःजी । वसुवित्-कर्मफल का ज्ञाता है। + च% और । सुदत्र:=परम कल्याण का देनेवाला है। येन-जिस करके तू । विश्वासंपूर्ण । वार्याणि=श्रेष्ठ प्राणियों को । पुप्यसि=ष्ट करती है। तम्-उस स्तन को । इह मेरी भार्या के स्तन में । धातवे बालक के पीने के लिये । कः इति प्रविष्ट कर । भावार्थ। हे सौम्य ! फिर पिता अपनी गोद में रक्खे हुये बालक को माता की गोद में देकर माता के स्तन के तरफ अभि- मुख करावे और सरस्वती देवी को प्रार्थना करता हुआ कहे कि हे देवि ! जो तेरा स्तन सफल है और जो प्राणियों का पालन करने हारा है और जो दुग्धधारक है और जो