पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/९१

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अध्याय १ ब्राह्मण ४ ७५ भेदा। + अभवत्-होता भया । ताम्-उस भेड़ी के । एव साथ । समभवत् वह बकरा व मेढ़ा मैथुन करता भया । तत:-तिसी कारण । अजावयानकरी भेड़ । अजायन्त होते भये । एवम् एव इसी तरह । यत्-जो। किंच-कुछ । इदम्- यह सृष्टि । आपिपीलिकाभ्या=चोंटी तक + अस्ति है । तत् सर्वम् उस सवको । मिथुनम्-मिथुन । असृजत-पैदा करता भया। भावार्थ । हे सौम्य ! वही यह शतरूपा स्त्री विचार करती भई कि जब इस पुरुप ने मुझको अपने ही से उत्पन्न किया है तब फिर मेरे साथ यह कैसे भोग करता है, इस प्रकार पश्चात्ताप करके दूसरी योनि को प्राप्त हो गई, जब वह गाय भई तब मनु बैल हो गया और उससे मैथुन किया, तिस मैथुन से गाय और बैल उत्पन्न हुए, फिर जब वह शतरूपा स्त्री घोड़ी हो गई तब मनु घोड़ा हो गया, जब शतरूपा गदही हुई तत्र मनु गदहा हो गया, फिर उसी शतरूपा से मैथुन किया तिस मैथुन से एक खुरवाली सृष्टि उत्पन्न होती भई, फिर शतरूपा वकरी हो गई तब मनु बकरा हो गया, जब शतरूपा भेड़ी हो गई तब मनु भेड़ा हो गया, और तब उसी भेड़ी के साथ भेड़ा मैथुन करता भया, तिस मैथुन से बकरी और भेड़ की सृष्टि होती भई, इस प्रकार जो कुछ सृष्टि ब्रह्मा से लेकर चींटी पर्यंत देखने में आती है सबको मैथुन ने ही उत्पन्न किया है ॥४॥ मन्त्रः ५ सोऽवेदहं वाव सृष्टिरस्म्यहं हीदं सर्वममृतीति ततः सृष्टिरभवत्सृष्टयां हास्यैतस्यां भवति य एवं वेद.।।