पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/१०७

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बेकन-विचाररत्नावली।

फैलाए हुए क़ालीन के समान है। फैलानेहींसे कालीनके ऊपर निकाले हुए चित्र विचित्र बेल बूटे दिखाई देतेहैं। इसी प्रकार, जब भाषणद्वारा विचार व्यक्त कियेजाते हैं तभी वे शोभायमान होते हैं, लपेटकर मनहीमें रख छोड़नेसे नहीं अच्छे लगते। यह समझना ठीक नहीं कि जो मित्र सदुपदेश और सत्परामर्श देनेमें समर्थ होते हैं, उन्हींके साथ वार्तालाप करनेसे मित्रताके बुद्धि विकाश रूपी दूसरे फलकी प्राप्ति होती है। ऐसे ऐसे मित्र मिलैं तो और भी अच्छा है परंतु यदि नभी मिलैं तो औरोंके साथ भी बातचीत करनेसे, मनुष्य बहुत कुछ ज्ञान सम्पादन कर सकता है, और अपने विचारोंको व्यक्त करनेकी युक्ति सीख सकता है। सानपर रखनेसे जैसे चाकू, कैंची इत्यादि पदार्थ चमकदार और धारयुक्त होजाते हैं परन्तु सान जैसीकी तैसीही रहजाती है, वैसेही मनुष्य चाहै कैसाही अज्ञान क्यों नहो, उसके साथ बातचीत करनेसे, बोलने वालेकी बुद्धि अवश्यमेव प्रखर होजाती है। हमारा तो यह मत है, कि अपने विचारोंको मनहीमें जीर्ण करके व्याकुल होनेकी अपेक्षा उनको किसी चित्र के सामने अथवा किसी मूर्त्तिके सामने जाकर कह सुनाना अच्छा है।

मित्रताके इस दूसरे फल के माहात्म्यको पूरा करनेके लिए एक बात और कहनी है। वह एक ऐसी बात है जो विशेष स्वष्ट है और जिसे साधारणतया छोटे बड़े सभी जानते हैं। वह यह है कि मित्रसे सत्परामर्श मिलता है। हिराक्लिटस[१]ने अपने एक कूटसुभाषित में ठीक कहाहै, कि "प्रकाशों में शुद्ध प्रकाश सबसे उत्तम है"। यह सर्वथैव सत्य है, कि दूसरे के परामर्शसे बुद्धि विकास रूपी जो


  1. ग्रीसमें हिराक्लिटस नामक एक महान् तपस्वी और तत्त्वेवत्ता होगयाहै। इसको एकान्तवास अति प्रिय था। फारसके राजा डारियस के बुलाने परभी यह अपनी पहाड़ी गुफासे बाहर नहीं निकला इसकी मृत्यु जलोदर रोगसे हुई। ईसाके लगभग ५०० वर्ष पहले यह विद्यमान था।