पृष्ठ:बेकन-विचाररत्नावली.djvu/११४

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मत्सर।


नहीं पड़ती; वह चुपचाप रही नहीं सकता। किसीने ठीक कहाहै कि "दूसरे की भली बुरी बातों का पता लगाने वाला अवश्यमेव दुःशील होता है"।

जिनकी प्रधानता कुलक्रमागत चली आई है वे जब किसी नूतन व्यक्तिका अभ्युदय देखते हैं तब मत्सर करने लगते हैं। ऐसे अभ्युदयमें उपरोक्त दोनों प्रकारके मनुष्योंके बीचका अन्तर नष्ट होजाता है। मत्सर उत्पन्न होनेका यही कारण है। कुलीन घराने वाले यह समझते हैं कि नए लोग अग्रेसर होते जाते हैं और वे पीछे पड़ते जाते हैं। यह केवल उनके दृष्टिदोष का फल है।

वृद्ध, विकलाङ्ग, षंढ और जारज लोग असूया तत्पर होते हैं। इसका यह कारण है, कि जो मनुष्य अपनी स्थितिमें संशोधन करके उसे अपनी दशाको नहीं पहुँचा सकता, वह दूसरे की स्थितिको हर प्रयत्नसे हानि पहुंचाने में कोई बात उठा नहीं रखता। परन्तु इस प्रकारके व्यङ्ग यदि किसी शूरवीर और पराक्रमी पुरुष में हुए तो वह उनको एक प्रकारका भूषण मानकर दूसरोंका मत्सर नहीं करता। ऐसे ऐसे व्यङ्ग जिसके शरीरमें होतेहैं, वह यह समझता है, कि अद्भुत अद्भुत और चमत्कारिक बातों के करनेसे, लोकमें, जो प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, वह इन व्यंगोंके कारण उसकी भी होगी; क्योंकि लोग कहैंगे, "देखो इस लंगड़ेने अथवा इस षंढने कैसे कैसे पराक्रमके काम किए"। नारसिस[१] आगेसिलास[२] और तैमूरलंग ऐसेहीथे। नारसिस षंढ था, और शेष लंगड़े थे।


  1. कांस्टैंटि नोपलमें जस्टिनियन नामक राजेश्वर के पास छठवें शतकमें नारसिस नामधारी एक षंढ था। यह बहुतही राज कार्य पटु था और व्यली सारियस नामक सेनापति के अनन्तर उसके पदके योग्य समझा गया था।
  2. आगे सिलास, ग्रीसके अन्तर्गत स्पार्टा प्रदेश का राजाथा। यह चतुर्थ शतक मे विद्यमान था। यह लंगड़ा था, परन्तु बड़ा पराक्रमी और शूरथा, युद्धमें इसने अनेक बार विजय पाई। यह ८४ वर्षका होकर मरा।