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बेकन-विचाररत्नावली।

स्मरण रखना चाहिये कि, मरने के समय भी कोई कोई सत् पुरुषों की चित्तवृत्ति में अन्तर नहीं होता; वे प्राणांत होने तक पहलेही के समान सुप्रसन्न बने रहते हैं। रोम के राजाओं में इस प्रकार के अनेक उदाहरण देखे जाते हैं। आगस्टस सीजर अपनी स्त्री से सन्मानसूचक बातें कहते कहते मरगया। अन्तकाल में उसने स्त्री से कहा "लिबिया! हम चलते हैं; हमें भूल न जाना"। रोम का इतिहासवेत्ता टैसीटस कहता है कि, टिबेरियस ने मरनेतक अपना गूढस्वभाव नहीं छोड़ा। उस समय भी उसके मुखमें एक, और पेट में एक, बात थी। बेस्पेशियन विनोदात्मक श्लिष्ट भाषण करते करते पंचत्व को प्राप्त हुआ। मरणकाल में स्टूल पर बैठे बैठे उसने कहा "हमें जानपड़ता है हम देवता[१] होरहे हैं"। मरने के समय गालबा[२] ने मस्तक पर हाथ रख अपने मारनेवालोंसे कहा "यदि हमारे मरनेहीमें लोगोंकी प्रसन्नता है तो लो हमारा यह मस्तक प्रस्तुत है"। सेप्टीमियस सिबेरिस ने शीघ्रताके साथ काम करते करते और यह कहते कहते, कि यदि और कुछ करना हो तो तुरन्त लावो, प्राण छोड़ें।

ढूँढने पर इसीप्रकार के औरभी उदाहरण मिलसकते हैं। किसी किसी जाति के लोग मृत्यु को बहुत कुछ समझते हैं और उसके लिये पहिलेही से उत्कट प्रबन्ध करने लगते हैं, जिससे मृत्युका भय और भी अधिक बढ़जाता है। जिसने यह कहा कि "मरना एक नैसर्गिक नियम है" उसने बहुतही ठीक कहाहै। जन्मलेना जिस प्रकार स्वाभाविक है मरना भी उसी प्रकार स्वाभाविक है। अज्ञानबालक को मरना और जन्मलेना कदाचित् दोनों समान दुःखद होते होंगे। सत्कार्य में निमग्न रहते रहते मरजाना अच्छा है। शस्त्रप्रहार सहन करके जैसे


  1. रोमन लोगों का यह कथन है कि, राजा मरने पर देवता होता है; परन्तु साधारण मरने को भी वह 'देवता होना' कहते हैं।
  2. जिन सैनिकों ने सिंहासन पर बैठनेमें गालबा की सहायता की थी उन्होंने प्रतिज्ञानुसार धन न पाने से, क्रोध में आकर उसे मारडाला।