पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१०१

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प्रथम अध्याय को प्रवचन का संग्रह करने के लिए चुना । अशोकावदान में भी प्रमुख आचार्यों का चुनाव संत्र नहीं करता है, किन्तु एक प्राचार्य से दूसरे श्राचार्य को अधिकार हस्तान्तरित होते हैं । पुराने समय में संघ का जो आधिपत्य था, वह जाता रहा और प्रमुखों का अधिकार कायम हो गया। प्राचीन काल में संघ का अध्यक्ष स्थविर होता था और उसकी व्यवस्था शिथिल थी। पीछे तीन, चार या अाठ स्थविरों की परिषद् होती थी, जिसके हाथ में ममस्त अधिकार होते थे । तत्पश्चात् यह परिसद् भी नहीं रही और एक प्रमुख हो गया। इन परिवर्तनों का शिक्षा पर भी अनिवार्य रूप से प्रभाव पड़ा । संघ के स्थान में एक व्यक्ति के प्रतिष्ठित होने से और उपासकों का प्रभाव घट जाने से बहत् का अादर्श सर्वोच्च हो गया। हम देख चुके हैं कि दीपवंश के अनुमार महाकाश्यप धुतवादी थे। इसका समर्थन 'मझिमनिकाय के महागोसिंग-सुत्त से भी होता है । जिस समय प्रथम संगीति का प्रचलित विवरण लिपिबद्ध हुआ, उस समय ऐमा मालूम होता है, आरण्यक का बड़ा प्रभाव था । इस लिए, अानन्द या अन्य स्थविर को संगीति का प्रमुख न बनाकर महाकाश्यप को प्रमुख बनाया और उन्होंने केवल अहंतों को संग्रह के काम के लिए चुना। क्योंकि धर्म का संग्रह अानन्द के बिना न हो सकता था, इसलिए वे उद्योग करके शीघ्र अर्हत् हो गये और उसके पश्चात् संगीति में मंमिलित किये गये। आगे चलकर जब भिन्तु विहार, संबाराम में रहने लगे, तब धुतवाद का ह्राम होने लगा; किन्तु नियमों का पालन कटोरता के साथ होने लगा और एकाधिकार बहने लगा।