पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६ पौब-धर्म-दर्शन थे। हमारे पास इसका पर्याप्त प्रमाण है कि भिक्षुओं ने इस श्रादेश के अनुसार कार्य भी किया। विनीतदेव (८वीं शताब्दी ई.) का कहना है कि सर्वास्तिवादी संस्कृत, महासांधिक प्राकृत, सम्मितीय अपभ्रंश, और स्थविरवादी पैशाची भाषा का प्रयोग करते थे। वासिलोफर का कहना है कि पूर्व-शैल और अपर-शैल के प्रज्ञा-अन्य प्राकृत में थे। बौद्धों के धार्मिक ग्रन्थ, पालि, गाथा, संस्कृत, चीनी और तिब्बती भाषाश्रों में पाये जाते हैं। मध्य एशिया की खोज में बौद्ध निकाय के कुछ ग्रन्थों के अनुवाद मंगोल, निगर, सोगडियन, कुचनी और नार्डर भाषा में पाए गये हैं। सबसे प्राचीन अन्य जो उपलब्ध हैं पालि-भाषा में हैं। पालि-निकाय को त्रिपिटक कहते हैं। सूत्र, विनय और अभिधर्म यह निकाय के तीन विभाग (पिटक ) हैं । त्रिपिटक के सब ग्रन्थ एक समय में नहीं लिखे गये। इनमें सूत्र और विनय अपेक्षया प्राचीन हैं। दीपवंश के अनुसार पहली धर्मसंगीति में धर्म ( सूत्र ) और विनय का पाठ हुा । अभिधर्म का इस संबध में उल्लेख नहीं मिलता। वैशाली की धर्मसंगीति में चुल्लवग्ग के अनुमार केवल विनय के ग्रन्थों का पाठ हुआ था । वैशाली की संगीति के समय संत्र में भेद हुश्रा! इस भेद का फल यह हुआ कि भिक्षु-संघ दो भागों में विभक्त हो गया-स्थविरवाद, और महामांघिक बाद । दीपवंश और महावंश के अनुसार विनय के दस नियमों को लेकर ही संघ में भेद हुआ था। महासांघिकों को परिवार पाठ (विनय का एक ग्रन्थ) नहीं मान्य था। अभिधर्म के प्रसिद्ध अन्य कथावत्युकी रचना अशोक के समय में हुई। सूत्रपिटक के कुछ अन्य बाद के मालूम पड़ते हैं। पेतवत्यु, विमानक्थु, बुद्धवंश, अपदान, चरियापिटक और जातक में दस पारमिता, बुद्धपूजा, चैत्यपूजा, स्तूपपूजा, भिक्षादान, विहारदान, श्राराम-अारोपण की महिमा वर्णित है । बुद्धवंश में 'प्रणिधान' और विमानवत्थु में पुण्यानुमोदन का उल्लेख पाया जाता है । इनकी चर्चा महायान के अन्यों में प्रायः मिलती है। इस कारण यह ग्रन्थ पीछे के मालूम होते हैं । पालि-निकाय के समय के संबन्ध में मतभेद पाया जाता है । सामान्यतः विद्वानों का मत है कि इसका अधिकांश दूसरी धर्ममंगीति के पूर्व प्रस्तुत हो चुका था। जब बौद्ध-धर्म का सिंहलद्वीप में प्रवेश और प्रसार हुआ तब दक्षिण के प्रदेशों के लिए, यह द्वीप एक अच्छा केन्द्र बन गया । यहां पालिनिकाय का विशेष श्रादर हुश्रा। निकाय ग्रन्थों पर सिंहल की भाषा में टीकायें भी लिखी गई जिनको आगे चलकर प्रसिद्ध टीकाकार बुद्धघोष ने पालि रूप दिया। बुद्धघोष का नन्म ३६० ई. के लगभग गया में हुआ था । यह रेवत का शिष्य था । अनुराधपुर (लंका ) के महाविहार में रहकर इन्होंने संघपाल से शिक्षा पायी और सिंहली भाषा में लिखी हुई टीकात्रों का पालि में अनुवाद किया। इन्होंने 'विसुद्धिमग्गो' नामक स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखा । पाँचवीं शताब्दी में सिंहलद्वीप में पालि दीपवंश और महावंश लिखे गये। पांचवीं शताब्दी के .. श्री पाहतोष मुखी सिकपर अबकी, भाग ३. मोरियन्टेलिया, भाग ३ पृ.६० में 'हिस्ट्री माफ भी बुद्धिस्ट स्कूलस,' नामक रेयूटन कीमुग विरचित मिषन्ध देखिए । २. बासिटीक, बुद्धिज्मस, पृष्ठ २५.