पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/११५

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तृतीय अध्याय २७ दूसरे भाग में कांचीपुर में धर्मपाल नाम के एक स्थविर हुए। इन्होंने ने भी पालि में टीकाएँ लिखी । लेका, बर्मा और श्याम में जो पालि-ग्रन्थ लिखे गए हैं वह चौथी शताब्दी से पूर्व के नहीं हैं । यह पालि-निकाय स्थविरवाद का निकाय है और लंका, वर्मा, श्याम और कंबोज में इसकी मान्यता है । इस प्रकार पालि-साहित्य का प्रसार होने लगा। पालि-साहित्य का रचना-प्रकार व विकास हम कह चुके हैं कि बुद्ध के समय में इसके प्रचार का क्या क्षेत्र था। यह धर्म अवन्ति तक पहुँचा था । 'उदान' से ज्ञात होता है कि अवन्ति दक्षिणापथ में भिक्षुओं की संख्या अल्प थी। महाकात्यायन अवन्ति राष्ट्र में विहार करते थे। तीन वर्ष में ये कटिनता से १० भिक्षु बना सके। बुद्ध के निर्वाण पर प्रथम धर्म-संगीति, धर्म-समा राजगृह में हुई। जिसमें धर्म और विनय का संग्रह हुा । धर्म सूत्रान्त हैं, जिसमें बुद्ध के उपदेश हैं। 'धर्म' अभिधर्म नहीं है । विनय में भिन्तु आदि के नियम है । त्रिपिटिक पीछे के हैं | चुल्लवमा [११ खन्धक ] अागम को दो भागों में विभक्त करता है; धर्म और विनय । इसमें जिन शब्द का उल्लेख नहीं है। 'पिटक' का अर्थ है 'पिटारा'। तीन पिरक हैं- सूत्र, विनय, तथा अभिधर्म । 'त्रिपिटक' शब्द प्राचीन है । प्रथम शताब्दी के शिलालेखों में 'तेपिटक' शब्द का प्रयोग है । अभिधर्म-पिटक के पहले अागम के दो ही विभाग थे । चुल्लवमा, १२ खन्धक में रेवत के संबन्ध में कहा है कि उसको 'धर्म' विनय और मातृका (पालि-मातिका) कण्ठस्थ हैं । यहाँ आगम त्रिविध हैं, किन्तु अभी अभिधर्म नहीं है । प्रथम धर्मसंगीति के विवरणों में भी मातृका का उल्लेख मिलता है । 'ए यू मेंग किंग' में कहा है कि महाकाश्यप ने स्वयं मातृका का व्याख्यान किया। एक दूसरे विवरण में मातृका-पिटक का उल्लेख है। दिव्यावदान में ये शब्द हैं- "सूत्रस्य विनयस्य मातृकाया:" | मातृका शब्द का क्या अर्थ है ? धर्मगुप्तों के विनय में विनय-मातृका है। इसमें विनय के विषयों की विस्तृत तालिका है । मालूम होता है कि इसी को परिवर्धित कर विनय की रचना हुई है। अतः यह तालिका एक प्रकार से उसकी माता है । इसीलिए इसे मातृका कहते हैं। विनय-मातृका में पिंडपात, नीवर, शयनासन आदि के नियमों की तालिका थी। पालि-विनय में प्राचीन मातृका का स्थान बन्धक' ने लिया | हमको दो भागों में विभक्त किया-महाचमा और चुल्लवग्ग । किन्तु हैमवतों के विनय में मातृका सुरक्षित है। इसी प्रकार एक धर्म-मातृका रही होगी। सूत्रान्तों की बहुत संख्या थी। उनके विषय विविध थे । इसलिए उनके संक्षिप्त विवरण की श्रावश्यकता थी. जिसमें देशना का सार संक्षेप में मालूम हो जाय । यह एक प्रकार की अनुक्रमणिका थी। इसका नमूना संगीति-सुत्तन्त है । यह 'दीघनिकाय में है। सर्वास्तिवाद के अभिधमौ' में संगीति-पर्याय के नाम से यह मातृका पाई जाती है। इसी धर्म-मातृका की वृद्धि होने से अभिधर्म-पिटक की रचना हुई। सूत्र-पिटक के पांच निकाय या आगम हैं । प्रायः पाँच निकाय है, किन्तु सर्वास्तिवाद में चार श्रागम ही सुरक्षित है।