पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/११८

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fo बौव-धर्म-दर्शन महाविभाषा कहते हैं । एक प्राभिधार्मिक हैं, जो—'षट्पादाभिधर्ममात्र पाठी, है। ये विभाषा को नहीं मानते। एक हैं जो 'वैभाषिक हैं । सर्वास्तिवादी और वैभाषिक अभिधर्म को बुद्धवचन मानते हैं। सौत्रान्तिक अभिधर्म-पिटक को बुद्धवचन नहीं मानते । उनका कहना है कि सूत्र में ही बुद्ध ने अभिधर्म की शिक्षा दी है। इसलिए, उन्हें सौत्रान्तिक कहते हैं। महाविभाषा की रचना के १५० वर्ष बाद आचार्य वसुबन्धु और संघभद्र का समय है (५ वी शताब्दी)। वसुक्धु के रचे ग्रन्थ ये हैं—अभिधर्मकोश, पंचस्कन्ध, त्रिंशिका और विशिका । संघभद्र का न्यायानुसार अभिधर्मकोश की टीका है । इनका दूसरा ग्रन्थ अभिधर्म-प्रकरण (१) है। त्रिपिटक तथा अनुपिटकों का संक्षिप्त परिचय विनय पिटक-भिनुनों के आचरण का नियमन करने के लिए भगवान् बुद्ध ने जो नियम बनाये वे 'प्रातिमोक्ष' (प्रातिमोक्ख ) कहे जाते हैं । इन्हीं नियमों की चर्चा विनय-पिटक में है । पिटकों में विनय-पिटक का स्थान सर्वप्रथम है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि इसको रचना सर्वप्रथम हुई थी। प्रातिमोक्ष की महत्ता इसी से सिद्ध है, कि भगवान् ने स्वयं कहा था कि उनके न रहने पर भी प्रातिमोक्ष और शिक्षापदों के कारण भिक्षुओं को अपने कर्तव्य का ज्ञान होता रहेगा और इस प्रकार संघ स्थायी होगा। प्रारम्भ में केवल १५२ नियम बने होंगे किन्तु विनय-पिटक की रचना के समय उनकी संख्या २२७ हो गई थी । सुत्तविभंग जो विनय-पिटक का प्रथम भाग है, वस्तुतः इन्हीं २२७ नियमों का विधान करने वाले सुत्तों की व्याख्या है। विनय-पिटक का दूसरा भाग ‘खन्धक' कहा जाता है । महावग्ग और चुल्लबग्ग ये दोनों खन्धक में समाविष्ट हैं । महावमा में प्रवज्या, उपोसथ, वर्षावास, प्रवारणा आदि से संबन्ध रखने वाले नियमों का संग्रह है । और चुल्लवम्ग में भिन्तु के पारस्परिक व्यवहार और संघाराम संबन्धी तथा भिक्षुणियों के विशेष प्राचार का संग्रह है। भगवान् बुद्ध की साधना का रोचक वर्णन महावग्ग में श्राता है और उनकी जीवन कथा का यह भाग ही प्राचीनतम प्रतीत होता है। महावस्तु और ललितविस्तर में इसी प्रकार का वर्णन पाया जाता है। विनय-पिटक का अन्तिम अंश परिवार है । संभव है यह भाग बहुत बाद में बमा हो और उसे सिंहल के किसी भिक्षु ने बनाया हो। इसमें वैदिक अनुक्रमणिकानों की तरह कई प्रकार की सूचियों का समावेश है। सुच-पिटक-भावान् के लोकोपकारी उपदेश और संवादों का संग्रह सुत्त-पिटक में है । इस पिटक में १-दीघनिकाय, २-मज्झिमनिकाय, ३-संयुत्तनिकाय, ४-अंगुत्तरनिकाय और ५-खुदकनिकाय—इन पाँच निकायों का समावेश है। दीघनिकायादि ग्रन्थों में किस प्रसंग में कहाँ भगवान् बुद्ध ने उपदेश दिया यह बताकर उपदेश या किसी के साथ होनेवाले वार्तालाप संवाद का रोचक दंग से संग्रह किया गया है। सामान्य रूप से इन अन्यों में जो सुत्त है वे गथ में हैं।