पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/११९

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तृतीय अध्याय दीघनिकाय में १४ सुत्त हैं। ये सुत्त लम्बे हैं, अतएव दी या दीर्घ कहे गये हैं। इनमें शील, समाधि और प्रशा का विस्तृत रोचक वर्णन है। दीघनिकाय के प्रथम ब्रह्मजाल- मुत्त में तत्कालीन धार्मिक और दार्शनिक मन्तव्यों का जो संग्रह है वह भारतीय दर्शनों के प्राचीन इतिहास की मामग्री की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । दूसरे सामफल-सुत्त में भगवान् बुद्ध के समकालीन धर्मोपदेशकों के मन्तव्यों का वर्णन है। वर्ण-धर्म-व्यवस्था के विषय में बुद्ध का मन्तव्य तीसरे अम्बट्ठ-मुत्त में संग्रहीत है जो प्राचीन भारतीय समाज व्यवस्था का अच्छा चित्र खड़ा करता है। पाचवें तेविज-सुत्त में वैदिकधर्म के विषय में बुद्ध ने जो कटाक्ष किया है और यशों का जो विरोध किया है उसका संग्रह करके बुद्ध की दृष्टि में यज्ञ कैसे करना चाहिए, उसका वर्णन किया गया है। इसी प्रकार के कई सुत्त दीघनिकाय में हैं जो तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक और दार्शनिक परिस्थिति के हमारे ज्ञान में वृद्धि करने के साथ ही तत्तद्विषय में बौद्ध मन्तव्य को भी स्पष्ट करते हैं। मझिमनिकाय में मध्यम आकार के १५२ सुत्तों का संग्रह है। दीघनिकाय की तरह इन सुत्तों में भी बुद्ध के उपदेश के ऊपर संवादों का संग्रह है। इसमें चार आर्य-सत्य, निर्वाण, कर्म, सत्कायदृष्टि, अात्मवाद, ध्यान आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों की चर्चा है और बौद्धधर्म के मन्तव्य का स्पष्टीकरण है। इसमें भी अन्सलायन-मुत्त में वर्णव्यवस्था के दोष बताये गए हैं और तत्कालीन भारत की सामाजिक परिस्थिति का मुन्दर चित्रण किया गया है । दृष्टान्त, कथा और उपमा के द्वाग वक्तव्य को हृदयंगम करने की शैली इम निकाय-प्रन्थ की अपनी विशेषता है । अाख्यान की शैली में अंगुलिमाल की कथा ८६ वे मुत्त में रोचक ढंग से कही गई है । वह एक भयंकर हाक था किन्तु वह भिक्षु बन गया और निर्वाण को भी प्राप्त हुश्रा | जातक की शैली की भी कई कथाएँ हम सुत्त में संग्रहीत है जैसे मुक्त ८२ और ८३ में। इसके अति- रिक्त बुद्ध के कई प्रधान शिष्यों के बारे में भी ज्ञातव्य सामग्री संग्रहीत है। प्रसिद्ध महापरिनिन्बन सुत्त, जिसमें बुद्ध के निर्वाण-काल का चित्र खड़ा किया गया है, वह भी इसी निकाय में है। इस निकाय के अध्ययन से हमारे समन बुद्धकालीन भारत का स्पष्ट चित्र स्खड़ा होता है । तीसरे संयुत्तनिकाय में ५६ संयुत्तों का संग्रह है। जैसे देवता-संयुत्त में देवताओं के वचनों का संग्रह किया गया है। मार-संयुत्त में बुद्ध को चलित करने के लिए किये गए मार के प्रयत्नों का संग्रह है । भिक्खुणी-संयुक्त में भी भितुणियों को चलित करने के लिए किये गए. मार के प्रयत्नों का वर्णन है। अनतमग संयुत्त में संसार की अनादिता और उसके भयंकर दुःखों का वर्णन है । ध्यान-संयुत्त में ध्यान का वर्णन है । मानुगाम संयुत्त में नारी के गुण और दोष तथा उसके फल का वर्णन है। सक-संयुत्त में बुद्ध के प्रति इन्द्र की भक्ति का निदर्शन है । अन्तिम सच्च-संयुत्त में चतुरार्यसत्य की विवेचना की गई है। इस ग्रन्थ में काव्य की दृष्टि से भी पर्याप्त सामग्री है । महाभारत के पक्ष-युधिष्ठिर-संवाद की तरह इसमें भी यक्ष-जुद्ध का रोचक संवाद है (१०-१२)। लोक-कविता का अच्छा संग्रह मार और मिक्खुपी संयुत्त में मिलता है।