पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१२२

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बौद्ध-पदान इस ग्रन्थ में बौद्ध-दर्शन के बटिल प्रश्नों को जैसे अनात्मवाद, क्षणभंगवाद के साथ साथ कर्म, पुनर्जन्म और निर्वाण श्रादि को सरल उपमार्य देकर तार्किक दृष्टि से सुलझाने का प्रयत्न किया गया है। मिलिन्दप्रश्न के समान ही नेत्तिपकरण भी प्राचीन ग्रन्थ है जो कि महाकञ्चान की कृति मानी जाती है। बुद्ध के उपदेशों का व्यवस्थित सार इसमें दिया गया है । इसी कोटि का एक अन्य प्रकरण 'पेटकोपदेश' महाकचान ने बनाया, ऐसा माना जाता है । पिटकों में प्रवेशक प्रन्थ के रूप में यह एक अच्छा प्रकरण है प्राचीन सिलोनी अट्ठकथात्रों के अाधार पर बुद्धघोष ने ( चौथी-पांचवीं शताब्दी) विनयपिटक, दीघ, मझिम, अंगुत्तर, संयुत्त, निकायों की टीका की। इन्हों ने ही सम्पूर्ण अभिधम्मपिटक की भी व्याख्यायें लिखी । ये व्याख्यायें अट्ठकथा कही जाती हैं । धम्मपद और जातक की अट्ठकथाएँ भी बुद्धघोष-कृत हैं, ऐसी परम्परागत मान्यता है । इन्होंने ही अनुराधपुर के महाविहार के स्थविरों की श्राशानुसार विसुद्धिमग्गो' नामक ग्रन्थ की रचना की । यह ग्रन्थ एक तरह से समस्त पिटक-ग्रन्थों की कुञ्जी के समान है अत एव उसे तिपिटक-अट्ठकथा भी कहा जाता है। इसमें शील, समाधि और प्रज्ञा का २३ अध्यायो में विस्तार से वर्णन है। इस ग्रन्थ की धम्मपाल-स्थविर ने पांचवीं शती में 'परमत्थमंजूगा टीका की है । इसी धर्मपाल ने थेरगाथा, थेरीगाथा, विमानवत्यु आदि खुद्दकनिकाय के ग्रन्थों की टीका की है । धम्मपाल के अनन्तर दशवों और बारहवीं शती के बीच में अनिरुद्ध आचार्य ने 'अभिधम्मत्थ-संगहो' नामक एक प्रन्थ लिखा । अभिधम्मपिटक में प्रवेशक ग्रन्थ के रूप में यह अन्य बेजोड़ है। इसकी अनेक टीकायें बनी हैं।