पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१२४

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बौद्ध-धर्म-दर्शन अाम्राय के अनुसार अष्टादश निकाय ( सम्प्रदाय) हो गये, जो दो प्रधान निकायों में विभक्त होते हैं महासांधिक और स्थविर । महासांघिक निकाय के अन्तर्गत पाठ और स्थविर से संभूत सर्वास्तिवादादि दश निकाय थे | हम देख चुके हैं कि किस प्रकार भिक्षु-संघ महासंघ से पृथक् होता गया। अतः स्थविरों का निकाय महासंघ के विरुद्ध था। प्रथम का संचालन स्थविरों की परिषद् करती थी; दूसरे में पुरानी प्रवृत्ति अभी विद्यमान थी। यह संभव है कि दूसरी संगीति के समय स्थविर-सर्वास्तिवादी पश्चिम के प्रतिनिधि थे और महासाधिक पूर्व के। इस दृष्टि से यदि हम आम्नाय का अध्ययन करें, तो उनपर काफी प्रकाश पड़ता 1 वसुमित्र के अनुसार स्थविर और महासांघिक का भेद अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में हुआ था। उनके अनुसार महादेव की पाँच वस्तुएँ विवाद की विषय थीं । संगीति के सदस्य चार में बेटे थे। वसुमित्र के ग्रन्थ के चीनी और तिब्बती भाषान्तरों में इन समूहों के नाम के बारे में ऐकमन्य नहीं हैं। भेद दो समूहों में हुआ था। इसलिए अनुमान किया जाता है कि इनमें से प्रत्येक समूह के दो नाम रहे होंगे । इन चार समूहों के ये नाम हैं--स्थविर या भदन्त, नाग या महाजनपद, प्राच्य या प्रत्यन्तक और बहुश्रुत । टीकाकार कहते हैं कि नाग विनयधर उपालि के शिष्यों को कहते हैं । अतः नाग बहुश्रुत (अानन्द ) के विपक्षी हैं । इसी प्रकार स्थविर प्राच्य के विपक्षी हो सकते हैं, यदि यह टीक है कि स्थविर पश्चिम के प्रतिनिधि थे। परमार्थ के अनुसार महाजनपद और प्रत्यन्तक एक दूसरे के विपक्षी हैं । मध्यदेश के ब्राह्मण अपने राष्ट्र के प्रत्यन्त में रहनेवालों को अनार्य मानते थे। स्मृतियों में मगध में जाना मना किया है । मध्यदेश उनके लिए महाजनपद होगा। महासांघिक पूर्व के थे, इसकी पुष्टि फाहियान के विवरण से भी होती है । फाहियान ने पालिपुत्र में महासांधिकों के विनय की पोथी देखी थी। चीनी यात्री इत्सिंग (९६२ ई.) के विवरण' के अनुसार अठारह निकाय चार प्रधान निकायों में विभक्त हैं-आर्य-महामांधिक, आर्य-स्थविर, आर्य-मूलसर्वास्तिवादिन् और आर्य संम्मिाय । इसिंग के अनुसार महासांघिक के सात,स्थविर के तीन,मूल सर्वास्तिवाद के चार और सम्मितीय के चार विभाग हैं। मूल सर्वास्तिवाद के चार विभाग ये हैं-मूल-धर्मगुप्त,महीशासक, और काश्यपीय । इसिंग ने अन्य निकायों के विभागों के नाम नहीं दिये हैं । यद्यपि इत्सिंग के अनुसार चारों निकाय मगध में पाये जाते तथापि हर एक का एक नियत स्थान था। महासांधिक मगध में और अन्य पूर्व जनपदों में, स्थविर दक्षिणापथ में, सर्वास्तिबाद उत्तर भारत में और सम्मितीय लाट और सिन्धु में प्रधानतः थे। मूल- के अन्य तीन विभाग भारत में नहीं थे । ये चीन, मध्य एशिया और श्रोडियान में पाये जाते थे 1 हमको यह निश्चित रूप से मालूम है कि सर्वास्तिवाद का उत्तर में और स्थविरवाद का दक्षिण में प्राधान्य था। हेनत्सांग के संस्मरणों से मालूम होता है कि सम्मितीय बिम्वर 1.परि माफ दी इदिस्त रिसीजन ।