पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१२५

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चतुर्थ अध्याय गये थे । इत्सिंग स्वयं मूल-सर्वास्तिवादी थे। इससे संभव है कि उसने अपने निकाय के महत्त्व को अतिरंजित कर वर्णित किया है । यह धर्मगुप्त, महीशासक और काश्यपीय को आर्यमूल सर्वास्तिवाद का विभाग बताता है, किन्तु दीपवंश और महावंश के अनुसार धम्मगुत्त, सब्बत्थिवाद और कस्सपिक महिंसासक-निकाय से अलग हुए थे और महिंसासक थेर की शाखा ये । दोनों विवरणों में इन चारों को एक समूह में रखा है। अन्तर इतना ही है कि इत्सिंग इनको मूल सर्वास्तिवाद के अन्तर्गत बताता है, जब कि दीपवंश और महावंश में इनकी उत्पत्ति स्थविरवाद से बताई गई है ! प्रथम महासंगीति के विवरणों की तुलना करने से ज्ञात होता है कि स्थविर, महीशासक, धर्मगुप्तक और हैमवत का एक समूह है । दूसरी ओर सिंहलद्वीप के ग्रन्थ और अंशतः इत्सिंग से स्थविर, महीशासक, सर्वास्तिवादी धर्मगुप्तक और काश्यपीय का एक समूह में होना मालूम होता है । दीपवंश (८,१०) से मालूम होता है कि हिमवत्-प्रदेश के निवासियों को मौम्गलिपुत्त के भेजे हुए कस्सपगोत्त, दुन्दुभि-स्वर आदि ने शासन में प्रवेश कराया । महावंश (१२,४१ ) के अनुसार मज्झिम ने चार स्थविरों के साथ हिमवत्-प्रदेश में जाकर धर्मचक्र का प्रवर्तन किया। समन्तपासादिकार के अनुसार यह काम मज्झिम ने किया। सोनरी और सांची के स्तूपों के लेखों में कस्सपगोत्त को हिमवत्-प्रदेश का श्राचार्य बताया है। अन्य लेखों में मज्झिम और दुदुभिर के नाम हैं । इन सब प्रमाणों को मिलाकर हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि कश्यपगोत्र स्थविर के नेतृत्व में हिमवन्-प्रदेश को विनीत करने का काम हुआ था। इसीलिए. लेखों में कश्यपगोत्र को सर्वत्र हैमवताचार्य कहा है । अतः यह ज्ञात होता है कि हैमवत और काश्यपीय एक ही निकाय के विभाग हैं । वसुमित्र इन दोनों को पृथक्-पृथक् गिनाते हैं । अतः यह एक नहीं हैं, किन्तु एक ही निकाय के विभाग हैं । स्थविर-निकाय दक्षिण की ओर बढ़ रहा था। पीछे यह सिंहलद्वीप गया। महीशासक भी सिंहल में थे और फाहियान ने वहाँ उनका विनय पाया था। सिंहल के अामाय के अनुसार सबसे पहले यही स्थविरवाद से अलग हुए। कुछ विद्वानों का विचार है कि महीशासकों का पूर्व स्थान माहिष्मती था। इसका नाम महिप-मण्डल ( पालि-महिंसक मण्डल ) है। द्वितीय संगीति के वर्णनों से मालूम होता है कि यहाँ एक प्रसिद्ध बौद्ध-संघ था। इन विद्वानों का कहना है कि इसी नाम पर निकाय का नाम 'महीशासका पड़ा । धर्मगुप्तक नाम कदाचित् काश्यपीय की तरह निकाय के प्राचार्य के नाम पर पड़ा । दीपवंश और महावंश के अनुसार धम्मरक्षित अपरान्तक भेजे गये थे और मध्यन्दिन कश्मीर । सर्वास्तिवाद के आगम में इन्हें मध्यन्तिक कहा है । क्या धम्मरक्खित और धर्मगुप्त एक तो नहीं हैं ? कश्मीर के निकाय को मूल सर्वास्तिवादी-निकाय कहते थे। यह बहुत प्रसिद्ध निकाय था। इसमें कई प्रसिद्ध श्राचार्य हुए, जिन्होंने अनेक ग्रन्थों की संस्कृत में रचना की । इस निकाय का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत था। यह गंगा-यमुना को घाटी से पश्रिम की ओर फैलकर मध्यएशिया में भी गया । स्थविर निकाय का भी विस्तृत क्षेत्र था। यह कौशाम्बी,