ka बौद्ध-धर्म-दर्शन महाविहार में नानाप्रकार के भिन्तु निवास करते हैं। आपस के विरोध के कारण विहार का दैनिक कृत्य भलीभाँति संपादित नहीं होता। जब योगी भिक्षा के लिए बाहर जाता है और यदि वह देखता है कि कोई काम करने से रह गया है, तो उसे उस काम को स्वयं करना पड़ता है। न करने से यह दोष का भागी होता है और यदि करे तो समय नष्ट होता है, विलम्ब हो जाने से उसको भिक्षा भी नहीं मिलती । यदि वह किसी एकात स्थान में बैठकर समाधि की भावना करना चाहता है तो श्रामणेर और तरुण भिक्षुत्रों के शोर के कारण विक्षेप उपस्थित होता है। जीर्ण विहार में अभिसंस्कार का काम बराबर लगा रहता है । राजपथ के समीपवती विहार में दिनरात आगन्तुक श्राया करते हैं। यदि विकाल में कोई आया तो अपना शयनासन भी देना पड़ता है । इसलिए. वहां कर्मस्थान का अवकाश नहीं मिलता। यदि विहार के समीप पुष्करिणी हुई तो वहाँ निरन्तर लोगों का जमघट रहा करता है। कोई पानी भरने आता है तो कोई चीवर धोने और रंगने श्राता है। इस प्रकार निरन्तर विक्षेप हुआ करता है। ऐसा विहार भी अनुपयुक्त है, जहाँ नाना प्रकार के शाक, पर्ण, फल या फूल के वृक्ष हो, वहाँ भी निवास नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसे स्थानों पर फल-फूलों के अर्थी निरन्तर अाया जाया करते हैं, न देने पर कुपित होते हैं, कभी कभी जबरदस्ती भी करते हैं, और समझाने बुझाने पर नाराज होते हैं और उस भिन्तु को विहार से निकालने की चेष्टा करते हैं । किसी लोक-संमत स्थान में भी निवास न करना चाहिये। क्योंकि ऐसे प्रसिद्ध स्थान में यह समझकर कि यहाँ अर्हत् निवास करते हैं, लोग दूर दूर से दर्शनार्थ आया करते हैं । इससे विक्षेप होता है। जो विहार नगर के समीप हो वह भी अनुरूप नहीं है, क्योंकि वहाँ निवास करने से कामगुणोपसहित हीन शब्द काँगोचर होते रहते हैं और अंसदश अालम्बन दृष्टिपथ में अापतित होते हैं । जिस विहार में वृक्ष होते हैं, वहां काष्ठहारक लकड़ी काटने श्राते है; जिससे ध्यान में विक्षेप होता है । जिम विहार के चारों ओर खेत हों वहाँ भी निवास न करना चाहिये । क्योकि बिहार के मध्य में किसान खलिहान बनाते हैं, धान पीटते हैं और तरह तरह के विघ्न उपस्थित करते हैं । जिस विहार में बड़ी जायदाद लगी हो वहाँ भी विक्षेप हुश्रा करता है। लोग तरह तरह की शिकायतें लाते हैं और समय समय पर राजद्वार पर जाना पड़ता है। जिस विहार में ऐसे भिन्तु निवास करते ही जिनके विचार परस्पर न मिलते हों . और जो एक दूसरे के प्रति वैरभाव रम्बत हो वहाँ सदा विघ्न उपस्थित रहता है, वहाँ भी नहीं रहना चाहिये। योगी को दोषों से युक्त विहारों का परित्याग कर ऐसे विहार में निवास करना चाहिये जो भिक्षाग्राम से न बहुत दूर हो, न बहुत समीप; जहाँ श्राने-जाने की मुविधा हो, जहां दिन में लोगों का संघट्ट न हो, वहां रात्रि में बहुत शब्द न हो और जहां हवा, धूप, मच्छड़, खटमल और साँप श्रादि रेंगनेवाले जानवरों की बाधा न हो; ऐसे विहार में सूत्र और विनय के जानने वाले भित्तु निवास करते हैं। योगी उनसे प्रश्न करता है और वह उसके सन्देहों को दूर करते हैं।