पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१५

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विषय-सूची लेखक के दो शब्द भूमिका [म. म. पं० गोपीनाथ कविराज लिखित ] श्राचार्यजी का अनुरोध 4-ग्रन्थ की विशेषता-बौदेतरों में बौद्ध-दर्शन के सम्यक् श्रालोचन का अभाव-- -बौद्ध तथा अन्य भारतीय साधन-धाराओं में साम्य-अन्य के विषय-बौद्ध-धर्म व जीवन में श्रादर्शगत वासनाक्षय और वासना-शोधन का सिद्धान्त- सम्यक्-संबुद्धत्व का परम श्रादर्श-श्राध्यात्मिक-जीवन में करुणा तथा सेवा का स्थान--- करुणा की लोकोत्तरता—महायान ही योगपथ है-करुणा की साधनावस्था और साध्यावस्था--श्रावक तथा प्रत्येक बुद्ध से बोधिसत्र के सम्यक्-संबुद्धत्वरूप प्रादर्श का भेद-पारमिता-नय तथा मन्त्र-नय का स्वरूप और उद्देश्य मन्त्रमार्ग के अवान्तर भेद (वनयान, कालचक्रयान तथा सहजयान)-चार वन-योग--अभिसंबोधि का उत्पत्ति-अम तथा उपन्न-कम-उत्यत्ति-क्रम की चार अभिसंबोधियाँ-काय, वाक्, चित्त और ज्ञान वयोग-क्षणभेद के अनुसार धानन्द के चार भेद-तान्त्रिको की त्रिकोण-उपा. सना-चार मुद्राएँ-११ अभिषेक (७ पूर्वाभिषेक, ३ उचराभिषेक, १ अनुत्तरा- भिषेक )-षडंग योगसाधन का विस्तार---कालचक्र—शून्यता-बिब का साधन- तांत्रिक साधन में दो प्रकार के योगाभ्यास-बौद्ध-तन्त्र के प्रवर्तक श्राचार्य- तन्त्र-शास्त्रों के अवतरण का अन्तरंग रहस्य---बौद्धतन्त्र और योग का साहित्य-तन्त्र के मूल प्रादर्श का महत्व । लेखक की जीवनी प्रथम खण्ड (१-१००) [प्रारम्भिक बौद-धर्म तथा दर्शन ] प्रथम अध्याय मुदका जीवन भारतीय संस्कृति की दो धाराएँ-बुद्ध का प्रादुर्भाव-बुद्ध के समसामयिक, सुरक- प्राप्ति-धर्मप्रसार-चारिका, वर्षावास और प्रवारणा-निर्वाण अनेक प्रकार के मिनु-भगवान् का परिनिर्वाण-वैदिक धर्म का प्रभाव-प्रथम धर्म-संगीति ।