पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौर-पम-दर्शन होता है। उक्त रीत्या योगी उपचार-ध्यान का लाभी हो, क्रमपूर्वक ध्यानों का उत्पाद करता है। बायो-कसिण-योगी को वायु में निमित्त का ग्रहण करना होता है। दृष्टि या स्पर्श द्वारा इस निमित्त का ग्रहण होता है। घने पत्तों सहित गन्ना, बाँस या किसी दूसरे वृक्ष के अग्रभाग को वायु से सञ्चालित होते देखकर चलनाकार से निमित्त का ग्रहण कर प्रहारक-वायु-सङ्घात में स्मृति की प्रतिष्ठा करनी चाहिये या शरीर के किसी प्रदेश में वायु का स्पर्श अनुभव कर सङ्घटनाकार में निमित्त का ग्रहण कर वायु-सङ्घात में स्मृति की प्रतिष्ठा करनी चाहिये । इसका उद्ग्रहनिमित्तं चल और प्रतिभाग-निमित निश्चल और स्थिर होता है । ध्यानोत्पाद की प्रणाली वही है जो पृथ्वी-कसिण के संबन्ध में बनायी गई है। मील-कसिर-जो अधिकारी है उसे नील-पुष्प-संस्तर, नील-वस्त्र या नीलमणि देखकर निमित्त का उत्पाद होता है । पर जो अधिकारी नहीं है उसे नीले रङ्ग के फूल लेकर उन्हें टोकरी में फैला देना चाहिये और ऊपर तक फूल की पत्तियों को इस तरह भर देनी चाहिये जिसमें केसर या वृन्त न दिखलाई पड़े या टोकरी को नीले कपड़े से इस तरह बांधना चाहिये जिसमें वह नील-मण्डल की तरह मालूम पड़े, या नील वर्ण के किसी धातु को लेकर चल-मएडल बनावे या दीवाल पर उसी धातु से कसिण-मएटल बनावे और उसे किसी असदृश वर्ण से परिच्छिन्न कर दे। फिर उस पर भावना करे । शेष-क्रिया पृथ्वी कमिण के समान है। पीत-कसिण-पीतवर्ण के पुष्प, वस्त्र या धातु में निमित्त का ग्रहण करना पड़ता है। डोहित-कसिण-रक्तवर्ण के पुष्प, वस्त्र या धातु में नीलकमिण की तरह भावना करनी होती है। मतदात-सिब-ग्रवदात-पुष्प, वस्त्र या धातु में नील कोसण की तरह भावना करनी होती है। मालोक-कसिब-जो अधिकारी है वह प्राकृतिक बालोक-मण्डल में निमित्त का ग्रहण करता है । सूर्य या चन्द्र का जो बालोक खिड़की या छेद के रास्ते प्रवेश कर दीवाल या जमीन पर आलोक-मण्डल बनाता है या घने वृक्ष की शाखानों से निकलकर जो श्रालोक जमीन पर आलोक-मए डल बनाता है, उसमें भावना द्वारा योगी निमित्त का उत्पाद करता है । पर यह अवभाम-मण्डल चिरकाल तक नहीं रहता। इसलिए साधारण-जन इसके द्वारा निमित्त का उत्पाद करने में असमर्थ भी होते हैं। ऐसे लोगों को घर में दीपक जलाकर घर के मुख को ढक देना चाहिये, और घट में छेदकर घट को दीवार के सामने रख देना चाहिये । छेद से दाप का जो पालोक निकलता है वह दीवाल पर मण्डल बनाता है। उसी शालोम-मएइल