पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/१९४

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बौदधर्म पान चरियापिटक में बुद्ध के पूर्वजन्मों की कथा वर्णित है। इस ग्रन्थ में भी पारमित. का उल्लेख मिलता है। अर्हत् का आदर्श परम कारुणिक बुद्ध के आदर्श की अपेक्षा तुच्छ मालूम पड़ने लगा। बुद्ध-वरित के अनुशोलन से बुद्ध के अनुकरण करने की इच्छा प्रकट हुई। भगवान् सर्वश ये। वह जानते थे कि जीव दुःख से अातं है। बीवों के प्रति उनको महा-करुणा उत्पन्न हुई और इसी करुणा से प्रेरित होकर भावान् बुद्ध ने जीवों के कल्याण के लिए ही धर्मोपदेश करना स्वीकार किया। बुद्ध-चरित से प्रभावित होकर बौद्धों में एक नवीन विचार-पद्धति का उदय हुया। अष्टांगिक-मार्ग की जगह पर बोधिसत्व-चर्या का विकास हुश्रा और इस समुदाय का अादर्श श्रहत्त्व न होकर बोधिसत्व हुश्रा, क्योंकि भगवान बुद्धत्व की प्राप्ति के पूर्व तक 'बोधिसत्य थे । 'बोधिसत्व' उसे कहते हैं बो सम्यक्-ज्ञान की प्राप्ति चाहता है। जिसमें सम्यक्-ज्ञान है उसी के चित्त में जीवलोक के प्रति करुणा का प्रादुर्भाव हो सकता है । इस नवीन-धर्म का नाम महायान पड़ा। महायान- वादी प्राचीन विचार वालों को हीनयान-वादी कहते थे । हीनयान का दूसरा नाम श्रावक-यान है। इसका प्रतिपक्ष महायान या बोधिसल्ल्यान है, इसको अग्रयान भी कहा है । बुद्ध-वंश में श्रावक और प्रत्येक-बुद्ध, सम्यक सम्बुद्ध के प्रतिपक्षी हैं। श्रावकयान और प्रत्येक-बुद्धयान में ऐसा अन्तर नहीं है; दोनों एक ही बोधि और निर्वाण को पाते हैं। प्रत्येक-युद्ध सद्धर्म के लोप हो जाने पर अपने उद्योग से बोधि प्राप्त करते हैं। प्रत्येक बुद्ध उपदेश से विरत है, केवल प्रातिहार्य द्वारा अन्यधर्मावलम्बियों ( तीथियो ) को बौद्धधर्म की शिक्षा देते हैं । सद्धर्म-पुण्डरीक तथा अन्य कई सूत्रों का स्पष्ट कहना है कि एक ही यान है -बुद्धयान। पर इसकी साधना में बहुत समय लगता है, इसलिए. बुद्ध ने अर्हत् के निर्माण का निर्देश किया है । एक प्रश्न यह उठता है कि क्या महायान के प्राचार्यों के मत में महायान ही मोक्षदायक है ? इत्सिंग का कहना है कि दोनों यान बुद्ध की प्रार्य-शिक्षा के अनुकूल हैं । दोनों समानरूप से सत्य और निर्वाणगामी हैं । इत्सिंग स्वयं हीनयान-वादी था। वह कहता है कि यह बताना कठिन है कि हीनयानान्तर्गत अट्ठारह वादों में से किसको गणना महायान या हीनयान में की आय । युश्रान-च्चांग (इनत्सांग) ऐसे भिन्तुओं का उल्लेख करता है, जो स्थविर-वादी होकर भी महायान के अनुयायी थे और बिनय में पूर्ण थे। ऐसा मालूम पड़ता है, कि कुछ हीनयान के मिनु भी महायान-मंवर का ग्रहण और पालन करते थे । महायान के विनय का प्राचीनतम रूप सात नहीं है । यह संभव है कि आदि में महायान-बाद के निजके विनय नहीं थे। पीछे से साधक के लिए ग्रन्थों की रचना की गई। इमिंग के अनुसार महायान की विशेषता कबल बोधि- सत्वों की पूजा में थी। महायान के अन्तर्गत भा हीनयान के समान अनेक वाद थे। इनमें पारमिता-यान या बोधिसत्व-यान या बुद्ध-यान, प्रज्ञा-यान (=ज्ञान-मार्ग ) और भक्ति-मार्ग प्रधान है। श्रागे चलकर तन्त्र के प्रभाव से मन्त्र-यान, वन-यान, और तन्त्र-यान का विकास हुश्रा । प्राय महायानवादी हीनयान की साधना को तुच्छ समझते हैं। कुछ का यहाँ तक कहना है कि श्रावकयान द्वारा निर्वाण नहीं मिल सकता। शान्तिदेव का कहना है कि श्रावक- यान की कथा का उपदेश नहीं करना चाहिये, न उसको सुने, न उसको पढ़ें, क्योंकि इससे