पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२०

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परमार्थ-सत्य-सत्य-व्य का प्रयोधन) निर्वाण (निर्वाण की सन्ध-निधिता- निर्वाण की कल्पना-चयता-निर्वाण से संसार का अमेद-तथागत के प्रवचन का रहस)। पश्चिम खण्ड (५६३-६१६) [ोप-याव] विश अन्याय लाता, दिए, माया, और माण विषय-प्रवेश-कालवाद ( काल का उद्गम काल का प्राधार-काल और प्रकाश की समानता, उसके लक्षण-विभाषा में कालवाद द-माषिक-नय में कालवाद- उत्तरवर्ती वैभाषिक मतकारित्र का सिद्धान्त-फलाचेप-शक्ति और कारित्र) दिग्-श्राकाशवाद-प्रमाण ( प्रमाण शास्त्र का प्रयोजन न-प्रमाण-पल तथा प्रमाणका लक्षण-प्रमाणों की सत्यता की परीक्षा-वस्तु-सत्ता का दैविध्य-प्रमाण का वैविध्य)- प्रत्यक्ष ( मानस-प्रत्यक्ष-योगि-प्रत्यक्ष स्वसंवेदन)- प्रत्यक्ष पर अन्य मारतीय दर्शनी के विचार-अनुमान (वार्थानुमान-लिंग की त्रिरूपता--त्रिरूप-लिंग के तीन प्रकार-अनुपलन्धि के प्रकार भेद-परार्थानुमान-अनुमान प्रयोग के अंग- रेवाभास)। शब्दानुनमणी पहायक मन्यसूची ७२-७४ OR