पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२०६

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गौत-धर्म-दर्शन मुनि तथागत का निर्मित कहा है ' अर्थात् वह उनकी लीला या माया-मात्र है । कथावत्थु में भी इस मत का उल्लेख पाया जाता है । दिव्यावदान में हम 'बुद्ध-निर्माण और निर्मित का प्रयोग पाते हैं । प्रातिहार्य-सूत्रायदान में यह कथा वर्णित है कि एक समय भगवान् राजगृह में विहार करते थे । उस समय पूरगा-कश्यर आदि छः तार्थिक राजगृह में एकत्र हुए और कहने लगे कि जब से श्रमण गौतम का लोक में उत्पाद हुआ है तब से हम लोगों का लाभ-सत्कार सर्वथा समुच्छिन्न हो गया है । हम लोग ऋद्धिमान् और ज्ञानवादी है, श्रमण-गौतम अपने को ऐसा समझते हैं । उनको चाहिये कि हमारे साथ ऋद्धि-प्रातिहार्य दिखलाये, जितने ऋद्धिप्रातिहार्य वह दिखलायेंगे उसके दुगुने हम दिग्वलायेंगे। भगवान् ने विकारा कि अनीत बुद्धों ने किम स्थान पर प्राणियों के हित के लिए महाप्रातिहार्य दिखलाया था। उनको ज्ञान हुया कि श्रावस्ती में ! तब बद भिनु-संत्र के साथ श्रावस्ती गर । तोथिकों ने राजा प्रसेनजिर से प्रार्थना की कि ग्राम श्रमण-गौतम से प्रतिहार्य दिखलाने को कहें। रामा ने बुद्ध से निवेदन किया । बुद्ध ने कहा-मेरो तो शिना यह है कि कल्याण को छिपानो और पार को प्रकट करो । राजा ने कहा कि पार ऋद्धि-प्रातिहार्य दिखना और तार्थिकों की निर्ममना करें । बुद्ध ने प्रसेनजित् से कहा कि-अाज से सातवें दिन तथागत सबके समक्ष महानातिहाय दिग्बलायेंगे । जेतवन में एक मराइस बनाया गया और तार्थिकों को सूचना दी गई। सातवें दिन तार्थिक एकत्र हुए। भगवान् मण्डप में लाये । भगवान् के काय से श्मियों निकलीं और उन्होंने समस्त मण्डप को सुवर्ण वर्ण की कान्ति से अवभामित किया। भगवान् ने अनेक प्रातिहार्य दिखलाकर महापाति- हार्य दिखलाया । ब्रह्मादि देवता भावान् की तीन बार प्रदक्षिणा कर भगवान् के दक्षिण ओर और शक्रादि देवता बाई ओर बैठ गये। नन्द, उपनन्द, नाग-रामानों ने शकर-चक्र के परिमाण का सहत दल मुर्ग-कमल निर्मित किया । भगवान् पद्मकर्णिका में परमद हो वैठ गये और पड़ा के ऊपर दूमा पद्म निर्मित किया । उस पर भी भगवान पर्व-बद्ध हो वैठे दिखाई पड़े। इस प्रकार भगवान् ने बुद्ध-पिंडी अनिव-भवन-पयन्त निर्मित की । कुछ युद्ध-निर्माण शय्यासीन थे, कुछ खड़े थे, कुछ प्रातिहार्य करने थे और कुछ प्रश्न पूछने थे । राजा ने तीथिकों से कहा कि तुम भी ऋद्धि-धानिहाय दिखतायो । पर वे चुप रह गए और एक दूसरे से कहने लगे कि तुम उठो, नुन उठो; पर कोई भी नहीं उठा । पूरण कश्वर को इतना दुःख हुआ कि वह गले में बालुकावर बांधकर शांत-पुष्करिणा में कूद पड़ा और मर गया। इस कथा से ज्ञात होता है. कि बुद्ध प्रातिहार्य द्वारा अनेक सुखों की सृष्टि कर लग थे। इनको 'बुद्ध-निर्माण' कहा है। तथागत का यह धर्मता है कि महा-प्रतिहार्य करने के पश्चात् वह अपनी माता माया को अभि- धर्म का उपदेश करने के लिए स्वर्गलोक को जाते हैं । उनको प्रतिदिन भिक्षा के लिए मर्यलोक १. तेन खलु पुनः समयेन ये ते तथागता अहंन्तः सम्यक्सम्बुद्धाः अन्येभ्यो लोकधातु कोटीन- युतशतसहसेभ्योऽभ्यागता भगवतः शाक्यमुनेत्तथागतस्य निर्मिता येऽन्येषु लोकधातुषु सवानां धर्म देशयन्ति स्म । [सद्धर्मपुण्डरीक, पृ०३०७]