पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२०७

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पर अध्याय में जाना पड़ता था। इसलिए अपनी अनुपस्थिति में शिक्षा देने के लिए उन्होंने अपना प्रतिरूप निर्मित किया था। वर्ग में भगवान् स्वर्ग में रहे | जब वह उतरनेवाले थे तब शक्र ने विश्वकर्मा से त्रिपद सोपान बनवाया जिसका अधोघाद सांकाश्य-नगर के समीप रखा गया । भगवान् का सांकाश्य के समीप स्वर्गलोक से अवतरण हुअा। यहाँ सब बुद्ध स्वर्ग से उतरे हैं । बुद्ध अनेक प्रकार का रूप सर्वत्र धारण कर सकते | इसलिए. निर्माण-काय को 'सर्वत्रग' कहा है। त्रिकाय-स्तव में कहा है कि सच्चों के परिपाक के लिए. बुद्ध अनेक रूप धारण करने हैं । विज्ञान- वादियों के अनुमार बुद्ध के अनेक निर्मित-रूप ही निर्माण-काय नहीं है किन्तु समस्त जगत् बुद्ध का निर्माण काय कहा जा सकता है। शून्य और प्रकृति-प्रभास्वर विज्ञान धर्म-काय है । निर्माण- काय इस धर्म-काय के असन्-रूप हैं । जब विज्ञान बामना से संजिट होता है तब वह रूपलोक और कामलोक का निर्माण करता है। सम्भोग-काय-धर्मकाय और निर्माण काय के अतिरिक्त एक और काय की भी कल्पना की गयी है,यह है 'सम्मोग-काय' इस विपाक-काया भी कहते हैं । * विरवादियों के ग्रन्थों में संम्भोग- काय की कोई सूचना नहीं मिलती। चैमिनीफ का कहना है कि सौत्रान्तिक धर्म-काय और सम्भोग २ - दोनों को मानते थे। मम्भोग-काय वह काय है जिसको बुद्ध दूसरों के कल्याण के लिये बोधिसत्य के रूप में अपने पुण्य-भार के फल-स्वरूप तब तक धारण करते हैं जब तक निर्वाण में प्रवेश नहीं करते । महायान ग्रन्थों में हम बार-बार इस विचार का उल्लख पाते हैं कि बुद्धा व ज्ञान-गंभार और पुण्य-संभार का फल है । महायान-ग्रन्थों में ऐसे बुद्धों की सूचना मिनती हैं जो शायना में प्रवेश नहीं करते, जो दूसरों का कल्याण चाहने हैं और जो सबको मुम्बा करने के लिए. हा बुद्धत्व की अाकांक्षा करते हैं । वह एक. उकृष्ट प्रणिधान का रचना करते हैं जो प्रणिधान अन्त में माना है । वह फल-स्वरुप एक बुद्ध-क्षेत्र के अधिकारी हो जाते हैं जो नाना प्रकार की प्रचुर दिय-सम्पन् से समन्वागत होता है। उस बुद्ध-क्षेत्र में अपने पार्षदों के साथ वद मुशोभित होते हैं । सुखावता-व्यूह में र्णित है कि धमाकार-भितु ने ऐसे ही प्राणिधान का अनुष्ठान किया था और सुन्धारी-ल. के. उनका युद्ध-क्षेत्र हुअा। वहां अमिताभ नाम के युद्ध निवास करते हैं । भगवान् के भुग से धर्माकार-भि की प्रणिधान- सम्पत्ति को सुनकर अानन्द बोले- क्या धर्माकार-भिक्षु सम्यक-गंबोधि प्राप्त कर परिनिर्वाण में प्रवेश कर गये अथवा अभी मंबोधि को प्रान नहीं हुए. अथवा अभी वर्तमान हैं और धर्म- देशना करते हैं ? भगवान् बोले -- यह न अतीत और न अनागत-बुद्ध है। वह इस समय वर्तमान है। मुखावती लोकधातु में अमिताभ नाम के तथागत धम-देशना करते हैं। उनके बुद्ध-क्षेत्र की सम्पत्ति अनन्त है। उसकी प्रतिभा अमित है, उसकी इयत्ता का प्रमाण नहीं है। अनेक बोधिसत्त्व अमिताभ का दर्शन करने, उनसे परिप्रश्न करने लगा वहां के बोधिसत्वगण और बुद्ध-क्षेत्र के गुणालङ्कार-व्यूह को देखने सुग्वावती जाते हैं। बुद्ध अपनी पुण्य-राशि से यहां शोभित है। अमिताभ के पार्षद विलोकितेश्वर और महास्थाम-प्राप्त है। अमिताभ के नाम-श्रवण से ही जिनको चित्त-प्रसाद उत्पन्न होता है, जो श्रद्धावान् हैं, जिनमें संशय और विनिनित्सा नहीं है। जो अमिताभ का नाम-कीर्तन करते हैं वह सुखावती में जन्म लेते