पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२६ पौद-धर्म दर्शन नामक ग्रन्थ की वृत्ति का नाम विभाषा' है । शान-प्रस्थान के रचयिता कात्यायनी-पुत्र थे। यह सर्वास्तिवादी थे । 'विभाषा' का रचना-काल कनिष्क के राज्यकाल के पीछे है। विभाषा में सर्वास्तिवाद-निकाय के भिन्न-भिन्न श्राचार्यों का मत सावधानी के साथ उपनिबद्ध किया गया है, जिसमें पाठक अपनी रुचि के अनुसार जिस मत को चाहें, ग्रहण कर लें। इसी कारण इसका नाम विभाया है। ज्ञान-प्रस्थान-शास्त्र सर्वास्तिवादियों का प्रधान प्रन्थ । विभाषा के रचयिता सुमित्र थे और इस ग्रन्थ का पूरा नाम 'महाविभाषा शास्त्र' हुया । विभाषा ग्रन्थ अपने असली रूप में उपलब्ध नहीं है। इसका कुछ ही अंश मिला है, जिसके देखने से मालूम होता है कि यह विस्तार और उत्कृष्टता में किसी प्रकार कम न था। इस ग्रन्थ से इसकी दार्शनिक-पद्धति प्रौढ़ मालूम पड़ती है । परमार्थ ( ४६६-५६६ ई० ) के अनुसार छटी शताब्दी में यह ग्रन्थ शास्त्रार्थ का प्रधान विषय था। इस समय बौद्धों से सांख्यों का विवाद चल रहा था। फाहियान ' (३६६-४१४) अपने यात्रा-विवरण में लिखता है कि सर्वास्तिवाद के अनुयायी पाटलिपुत्र और चीन में थे । पर उनका विनयपिटक उस समय तक लिपिबद्ध नहीं हुश्रा था । युबान-च्यांग (हेन-साङ्ग) (६२६-६४५ ई.) के समय में इस निकाय का अच्छा प्रचार था ! उसके अनुसार काशगर, उद्यान (स्वात),उत्तरी सीमा के कई अन्य प्रदेश, फारम, कन्नौज और रानगृह के पास किसी एक स्थान में इस मत का प्रधान्य था । यद्यपि युनान्-च्चांग तेरह स्थानों का उल्लेख करता है जहाँ सर्वास्तिवाद का प्राधान्य था परन्तु खास भारतवर्ष में इस निकाय के उतने अनुयायी नहीं थे जितने कि अन्य निकायों के थे। इन्मिंग सातवीं शताब्दी में भारत श्राया (६७१-६६५ ई.)। वह स्वयं सर्वास्तिवाद का अनुयायी था। वह इस निकाय का पूरा विवरण देता है। इसिंग के अनुसार इसका प्रसार मगध, लाट, सिन्धु, दाक्षिणात्य, पूर्व भारत, मुमात्रा, जावा, चम्पा ( कोचीन चाइना ), चीन के दक्षिण-पश्चिम-पूर्व के प्रान्त तथा मध्य एशिया में था। इस विवरण से ज्ञात होता है कि सातवीं शताब्दी के पहले या पीछे किसी अन्य निकाय का इतना प्रचार नहीं हुआ जितना कि सर्वास्तिवादनिकाय का था । इसिंग के अनुसार इस निकाय का त्रिपिटक तीन लाख श्लोकों में था। चीनी भाषा में बौद्ध-साहित्य का जो भांडार उपलब्ध है; उसको देखने से मालूम होता है कि इस निकाय का अपना अलग विनर्यापटक और अभिधम्म-पिटक था। इमिंग ने सर्वास्तिवाद के समय विनर्यापटक का दीनी भापा में अनुवाद किया और उसके प्रचलित विनय के नियमों पर स्वयं एक ग्रन्थ लिखा। भारतवर्ष में केवल मूल-सर्वास्तिवाद के ही अनुयायी थे । लंका में यह बाद प्रचलित नहीं था। मूल-सर्वास्तिवाद के अन्य तीन विभाग मध्य एशिया में पाये जाते थे। पूर्व और 1. लग-का-विधान पृ० १६ । १. रेकॉर्ड, ऑफ दी पुरिस्ट रिविजन : इन्द्रोडक्शन । इसिन :