पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२१५

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महम् मध्याय १२७ पत्रिम चीन में केवल धर्मगुप्त प्रचलित था । बामिलीफ' कहते हैं कि तिक्त का विनय सर्वास्तिवादी निकाय का है। सिलवाँ लेवी के अनुसार संस्कृत के विनय-ग्रन्थ पहले पहल तीसरी या चौथी शताब्दी में संग्रहीत हुए। एकोत्तरागम ( अंगुनर-निकाय ), दीर्घागम ( दीप-निकाय), मध्यमागम (= मझिम निकाय ) के अंश पूर्वी नुर्किस्तान में खोज में मिले हैं। धर्मत्रात के उदान वर्ग (= उदान ) के भी अंश मिले हैं। प्रातिमोक्ष सूत्र के एक तिब्बती और चार चीनी अनुवाद मिलते हैं। इससे मालूम होता है कि प्रातिमोक्ष-सूत्र विनयपिटक में था। पालि के विनयपिटक के ग्रन्थों के नाम संस्कृत निकाय के अन्यों के नाम से मिलते हैं । स्थविरवाद के समान सर्वास्तिवाद के अभिधर्म ग्रन्थों की भी संख्या सात है पर नाम प्रायः भिन्न है । सर्वास्तिवादी शान-प्रस्थान को अपना मुख्य ग्रन्थ समझते हैं और अन्य छः ग्रन्थ एक प्रकार के परिशिष्ट हैं । शान-प्रस्थान काय है और अन्य छः ग्रन्थपाद हैं। जो सम्बन्ध वेद, वेदाङ्ग का है वही इनका सम्बन्ध है। इन अभिधर्म-ग्रन्थों का उल्लेख सबसे पहले यशोमित्र की अभिधर्म-कोश व्याख्या २ ( कारिका ३ की व्याख्या ) में पाया जाता है । ज्ञान-प्रस्थान पर दो वृत्तियां है--विभाषा और महाविभाषा । प्रवाद है कि बमुमित्र ने विभाषा का संग्रह किया था। महाविभाषा एक वृहत् ग्रन्थ है और प्रामाणिक माना जाता है । यह चौद्ध-अभिधर्म का एक प्रकार का विश्वकोष है। महाविभापा का वृहत् श्राकार होने के कारण एक छोटे ग्रन्थ की अावश्यकता प्रतीत हुई; इसलिए प्राचार्य यमुबान ने कारिका रूप में अभिधर्मकोश लिखा । वसुबन्धु का विरोधी संघभद्र था। उसने इस ग्रन्थ का खण्डन करने के लिए अभिधर्म न्याया- नुमार और अभिधर्मसमयप्रदीपिका रना। यह मूल संस्कृत-ग्रन्थ श्रप्राग्य है किन्तु चीनी अनुवाद उपलब्ध है । पालि के श्रभिधर्म ग्रन्थों में और इनमें कोई समानता नहीं पायी जाती। सौत्रान्तिक इन अभिधर्म ग्रन्थों को बुद्ध-वचन न मानकर चल सामान्य-शास्त्र मानते ये। वह केवल सूत्रान्तों को प्रमाण मानते थे। इसलिए, इनको सौत्रान्तिक कहते हैं । सौत्रान्तिक खसंवित्ति के सिद्धान्तों को मानते थे। इनका कहना था कि वस्तु स्वभाव से नाशवान् है; वे अनित्य नहीं हैं, पर क्षणिक हैं। उनका परमाणुवाद के विकास में हाथ है । उनका कहना है कि अणुओं में स्पर्श नहीं है, क्योंकि अणु के अवयव नहीं होते; इसलिए एक अवयव का दूसरे अवयव से स्पर्श नहीं होता । अणुत्रों में निरन्तरत्व है । 1. वासिलीन : बुरिज्मस् , पृ. १६ । २. श्रूयन्ते सभिधर्मशास्त्राणां कर्तारः । तद्यथा-ज्ञान-प्रस्थानस्य भार्यकात्यायनी पुत्रः कर्मा । प्रकरणपादस्य स्थविरवसुमित्रः । विज्ञानकायस्य स्थविरदेवशर्मा | धर्मस्कन्धाय मार्यशारिपुत्रः । प्रशसिशास्त्रस्य पार्यमौद्गल्यापनः । धातुकायस्य पूर्णः । संगसिपायस्थ महाकौशिकः । [विन्लोथिका, २१, पृ० १२]