पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२२१

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ससमध्याय पूर्वाभिमुख हो सात कदम रखे। उस समय अन्तरिक्ष में उनके ऊपर श्वेत वर्ण का दिव्य विपुल-छत्र और दो शुम चामर धारण कराये गये। जहाँ जहाँ बोधिसत्व पैर रखते थे वहाँ वहाँ कमल प्रादुर्भूत होता था। इसी प्रकार दक्षिणमुख और पश्चिममुख हो सात सात कदम रखे । सातवे कदम पर सिंह की तरह निनाद किया और कहा कि मैं लोक में ज्येष्ठ और श्रेष्ठ हूँ। यह मेरा अन्तिम जन्म है। मैं जाति-जरा और मरण-दुःख का अन्त करूँगा। उत्तराभिमुख हो बोधिसत्व ने कहा कि मैं सब सत्वों में अनुत्तर हूँ | नीचे की ओर सात पग रख कर कहा कि मार को उसकी सेना के सहित नष्ट करूँगा और नरक-निवासी सत्वों लिए महाधर्म- मेघ की दृष्टि कर निरयाग्नि को शान्त करूँगा। ऊपर की ओर भी बोधिसत्व ने सात पग रखे और अन्तरिक्ष की ओर ताका । जत्र बोधिसत्व ने जन्म लिया उस समय नाना प्रकार के प्रातिहार्य उदित हुए । दिव्य दुंदुभियों बनीं, सब ऋतु और समय के वृक्षों में फूल और फल लगे। विशुद्ध गगनतल से मेघ- शन्द सुन पड़ा । पृथ्वी कम्पायमान हुई । मेघ-रहित अाकाश से वर्षा हुई। सुगन्धित-वायु बहने लगी। मब दिशायें सुप्रसन्न मालूम पड़ीं। सब सत्यों को काय-सुख और चित्त-सुख प्राप्त हुा । सब सत्व अकुशल-क्रिया से विरत हुए । सब सत्व राग-द्वेष, मोह, दर्प इत्यादि दोषों से रहित हुए । जिनको नेत्रविकलता थी उनको चतु-लाभ हुए । दरिद्रों ने धन पाया। जो बद्ध थे वे बन्धन से मुक्त हुए। अवीचि आदि नरकों में वास करनेवाले सत्व दुःख रहित हो गये। तिर्ययोनि वालों का अन्योन्य-भक्षण-दुःख दूर हुअा। यमलोक-निवासी सत्वों का हुत्पिपासा- दुःख शान्त हुश्रा। सप्तपदी के समय सर्वलोक तेज से परिस्फुटित हो गये । गीत और नृत्य शब्द हुना और पुष्प, चूर्ण, गन्ध, माल्य, रत्न, अामरण और वस्त्र की वर्षा हुई । संक्षेप में यह क्रिया अद्भुत और अचिन्त्य हुई । सातवें अध्याय में अानन्द और बुद्ध का संवाद है । आनन्द ने अंजलिबद्ध हो बुद्ध को प्रणाम किया और कहा कि बुद्ध का अद्भुत-धर्म है। मैं भगवान् की शरण में अनेक बार जाता हूँ। भगवान ने कहा कि हे श्रानन्द ! भविष्य-काल में कुछ भितु उद्धत और अभिमानी होंगे । उनको भगवान् में श्रद्धा न होगी । उनका चित्त विक्षिप्त होगा और वे संशयान्वित होंगे। वे बोधिसत्व की गर्भावक्रान्ति-परिशुद्धि में विश्वास न करेंगे। वे कहेंगे कि यह किस प्रकार संभव है कि बोधिसत्व माता की कोख से बाहर आते हुप, गर्भमल से उपलिप्त नहीं हुए। वे मोह- पुरुष इस बात को न जानेंगे कि पुण्यवान् सत्यों का शरीर उधार-प्रसावमएड में नहीं होता; तथागत की गर्भावक्रान्ति कल्याण की देनेवाली होती है । भगवान् की गर्भ में अवस्थिति भूतदया के कारण होती है । वे नहीं जानते कि तथागत देवतुल्य हैं और हम लोग मनुष्यमात्र है। उनके स्थान की पूर्ति करने में हम समर्थ नहीं हैं। उनको समझना चाहिये कि हम लोग भगवान् की इयत्ता या प्रमाण को नहीं जान सकते । वह अचिन्त्य है । उद्धत भिन्नु अदि और प्रातिहार्य पर भी विश्वास नहीं करेंगे। वे बुद्धधर्मों का प्रतिक्षेप करेंगे। उनकी दुर्गति होगी। आनन्द ने भगवान से पूछा कि इन असत्पुरुषों की क्या गति होगी १ भगवान् बोले कि नो