पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२२५

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सप्तम अध्याय अश्वघोप-साहित्य सन् १८९२ ई० में सिलवां लेबी ने बुद्ध-चरित का प्रथमसर्ग प्रकाशित किया था । उस समय तक योरप में कोई यह नहीं जानता था कि अश्वघोष एक महान् कवि हो गया है। चीनी और तिब्बती श्राम्नाय के अनुसार अश्वघोष महाराज-कनिष्क के समकालीन थे। बुद्ध- चरित का चीनी अनुवाद पाँचवीं शताब्दी के पूर्वभाग में हुआ था । अश्वघोष का एक दूसरा ग्रन्थ शारिपुत्र-प्रकरण है। प्रोफेसर तुहर्म के अनुसार इस ग्रन्थ के जो अवशेष पाये गये हैं उनकी लिपि कनिष्क या हुविक के समय की है । जो प्रमाण उपलब्ध हैं उनके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि अश्वघोष कनिष्क के समकालीन या उनसे कुछ पूर्व के थे। चीनी अाम्राय के अनुसार अश्वघोप का सम्बन्ध विभाषा से भी था। पहले तो हमको विभाषा का काल निश्चित रूप से नहीं मालूम है । हम यह भी नहीं कह सकते कि समय-ग्रन्थ की रचना एक ही समय में हुई। पुनः यह भी नहीं प्रतीत होता कि अश्वघोष विभाषा के सिद्धान्तों से परिचित थे । कनिष्क के समय में जो धर्म-संगीति बतायी जाती है, उसके अस्तित्व के बारे भी सन्देह है। अश्वघोष की काव्य-शैली सिद्ध करती है कि बाइ कालिदास से कई शताब्दी पूर्व के थे । भास उनका अनुकरण करते हैं और उनका शब्द-भांडार यह सिद्ध करता है कि वह कौटिल्य के निकटवर्ती हैं। अश्वघोप अपने को साकेतक' कहने हैं और अपनी माता का नाम 'सुवर्णाक्षी बताते हैं । रामायण का उनके ग्रन्थों पर विशेष प्रभाव और यह इस बात पर जोर देते हैं कि 'शाक्य' इक्ष्वाकु-वंश के थे | अश्वघोष ब्राहाण थे । ब्राहाणों के समान उनकी शिक्षा हुई थी। हमको यह नहीं मालूम है कि वह कैसे चौद्धधर्भ में दीक्षित हुए। किन्तु उनके तीनों ग्रन्थ के विषय ऐसे हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि वह बौद्धधर्म के प्रचार में बहुत व्यस्त थे। तिब्बती विवरण के अनुसार वह एक अच्छे संगीतज भी थे, और गायकों के साथ वह भ्रमण करते थे, और धर्म का प्रचार गानों द्वारा करते थे । चीनी यात्री इत्सिंग का कहना है कि उनके समय बुद्ध-चरित का बड़ा प्रचार था और समस्त भारत में तथा दक्षिण-समुद्र के देशों ( सुमात्रा, जावा आदि ) में बुद्ध-चरित बड़ा लोकप्रिय था । बुद्ध-चरित, सौन्दरनन्द और शारिपुत्र प्रकरण-अश्वघोष के इन तीन ग्रन्थों से हम परिचित हैं । बुद्ध-चरित में जैमा नाम से ही प्रकट है, बुद्ध की कथा वर्णित है । इसमें २८ सर्ग हैं। किन्तु प्रथम सर्ग का भाग, २-१३ सर्ग, तथा १४३ रार्ग का भाग ही मिलते हैं। बुद्ध-कथा भगवत्प्रसूति से प्रारंभ होती है और मवेगोत्यत्ति, अभिनिष्काम, मारविजय, संबोधि, धर्म-चक्र प्रवर्तन, परिनिर्वाण श्रादि घटनाओं का वर्णन कर प्रथम धर्म-संगांति और अशोक के राज्य-काल पर परिसमाप्त होती है । सौन्दरनन्द में बुद्ध के भाई नन्द के बौद्ध-धर्म में दीक्षित होने की कथा है । इस ग्रन्थ में १८ सर्ग हैं । समग्र-ग्रन्थ सुरक्षित है । शारिपुत्र-प्रकरण नाटक ग्रन्थ है । इसमें ६ अंक हैं। इसमें शारिपुत्र और मौद्गल्यायन के बौद्ध-धर्म में दीक्षित