पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२२८

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बौद-धर्म-दर्शन तारानाथ के अनुसार मातृचेट अश्वघोष का दूसरा नाम है। इसिंग का कहना है कि मातृचेट का स्तोत्र अत्यन्त लोकप्रिय था। इसिंग ने स्वयं इसका चीनी में अनुवाद किया था । सौभाग्य से मध्य एशिया में मूलस्तोत्र का एक बहुत बड़ा भाग खोज में मिल गया है । मातृचेट अश्वघोष के बाद के हैं । इसी प्रकार 'श्रार्यशूर' जिनकी जातकमाला प्रसिद्ध है, अश्वघोष के अणी है। जातकमाला ३४ जातक-कथाओं का. संग्रह है। इनमें से लगभग सभी कथायें पालिजातक में पायी जाती है । इसिंग जातकमाला की भी प्रशंसा करता है और कहता है कि इसका उस समय बड़ा आदर था। अजन्ता की गुफात्रों में जातकमाला के दृश्य खचित हैं। प्रार्यशर का समय चौथी शताब्दी है। अवदान-साहित्य अवदान (पालि, अपदान ) शब्द की व्युत्पत्ति अज्ञात है, कम से कम विवाद-ग्रस्त है । ऐसा समझा जाता है कि इसका प्रारंभिक अर्थ असाधारण, अद्भुत कार्य है । अवदान-कथायें कर्म-प्राबल्य को सिद्ध करने की दृष्टि से लिखी गयी हैं। प्रारंभ में 'श्रवदान' का कोई भी अर्थ क्यों न रहा हो, यह असंदिग्ध है कि प्रायः इस शब्द का अर्थ कथामात्र रह गया है । 'महावस्तु को भी 'अवदान' कहा है। अवदान-कथाओं का सबसे प्राचीन संग्रह अवदान- शतक है। तीसरी शताब्दी में इसका चीनी अनुवाद हुआ था। प्रत्येक कथा के अन्त में यह निष्कर्ष दिया हुआ है कि शुज-कर्म का शुक्र-फल, कृष्ण का कृष्ण, और व्यामिश्र का च्यामिश्र- फल होता है। इनमें से अनेक-अवदामों में अतीत-जन्म की कथा दी है जिसका फल प्रत्युत्पन्न- काल में मिला। किसी किसी अवदान में बोधिसत्व की कथा है। इन्हें हम जातक भी कह सकते हैं क्योंकि जातक में बोधिसत्व के जन्म की कथा दी गई है, किन्तु कुछ ऐसे भी श्रव- वान हैं जिनमें अतीत की कथा नहीं पायी जाती। कुछ अवदान 'व्याकरण' के रूप में है अर्थात् इनमें प्रत्युत्पन्न की कथा वर्णित कर अनागत-फल का व्याकरण किया गया है । अवदान-शतक-हीनयान का ग्रन्थ है। इसके चीनी अनुवादकों का ही यह मत नहीं है, किन्तु इसके अन्तरंग प्रमाण भी विद्यमान है । सर्वास्तिवाद अागम के परिनिर्वाणसूत्र तथा अन्य सूत्रों के उद्धरण अवदान-शतक में पाये जाते हैं। यद्यपि इसकी कथाओं में बुद्ध-पूजा की प्रधानता है तथापि बोधिसत्व का उल्लेख नहीं मिलता । अवदान-शतक की कई कथार्थे अव- दान के अन्य-संग्रहों में और कुछ पालि-अपदानों में भी पायी जाती है। दिव्यावदान का संग्रह बाद का है, किन्तु इसमें कुछ प्राचीन कथायें भी हैं । यह मूलतः हीनयान का ग्रन्थ है, यद्यपि इसके कुछ अंश महायान से सम्बन्ध रखते हैं। ऐसा विश्वास था कि इसकी सामग्री बहुत-कुछ मूल-सर्वास्तिवाद के विनय से प्राप्त हुई है। विनय के कुछ अंशों के प्रकाशन से (गिलगिट हस्तलिखित पोथी, जिल्द ३) यह बात अब निश्चित हो गयी है दिव्यावदान में दाधीगम, उदान, स्थविरगाथा श्रादि के उद्धरण प्रायः मिलते हैं। दिव्यावदान में विनय से अनेक अवदान शब्दशः उद्धृत किये गये हैं। कहीं-कहीं बौद्ध भिक्षुओं की चर्या के नियम भी दिये गये हैं जो इस दावे की पुष्टि करते हैं कि दिव्यावदान मूलतः विनय- +