पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२३

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लेखक के दो शब्द

जब मैं अहमदनगर किले में नजरबन्द था, तब मैंने अमिधर्मकोश का फ्रेंच से भाषानुवाद किया था। यह ग्रंथ बड़े महत्व का है। मेरा विचार है कि इसका अध्ययन किये बिना बौद्ध-दर्शन के क्रमिक विकास का अच्छा ज्ञान नहीं होता। यह वैभाषिक-नय के अनुसार सर्वास्तिवाद का प्रधान ग्रंथ है। इस कार्य को समाप्त कर मैंने विज्ञानवाद के अध्ययन के लिए महायानसूत्रालङ्कार, विशिका, त्रिंशिका तथा त्रिशिका पर लिखी गई चीनी पर्यटक प्रधानचांग की विज्ञसिमानतासिद्धि का संक्षेप तैयार किया। प्राचार्य वसुबन्धु की त्रिशिका पर अनेक टीकाएँ थीं, जिनमें से केवल स्थिरमति की टीका उपलब्ध है। शुश्रानच्चांग की विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि चीनी भाषा में है। यह ग्रंथ किसी संस्कृत ग्रंथ का चीनी अनुवाद नहीं है, किन्तु एक स्वतंत्र ग्रंथ है। त्रिशिका पर बो अनेक टीकाएँ लिखी गयी थी, उनके आधार पर यह प्रय तैयार हुआ था। इसलिए, यह ग्रंथ बड़े महत्व का है। इसका मैंच अनुवाद पूसे नामक विद्वान् ने किया है। इस ग्रंथ का किसी अन्य भाषा में अनुवाद नहीं हुआ है। मैंने अभि धम्मस्थसंगहो, विसुदिमगो, उसकी धर्मपाल लिखित टीका (परमत्थमंजूसा) का भी अध्ययन किया। यह सब सामग्री अहमदनगर में ही एकत्र की गई। किन्तु बौद्ध-धर्म तथा दर्शन पर किसी विस्तृत ग्रंथ के लिखने की योजना मैंने नही तैयार की थी। अपने एक मित्र के कहने पर उनकी पुस्तक के लिए मैंने एक विस्तृत भूमिका लिखी थी, जिसमें बौद्ध धर्म का सिंहावलोकन किया था। छूटने के कई वर्ष पश्चात् मेरे कुछ मित्रों ने इस सामग्री को देखकर मुझे एक विस्तृत ग्रंथ लिखने का परामर्श दिया। समय-समय पर हिन्दी की विभिन्न पत्रिकाओं में मैंने बौद-धर्म के विविध विषयों पर लेख लिखे थे। बौद्ध साहित्य का इतिहास, सौत्रान्तिकवाद, माध्यमिक-दर्शन तथा बौद्ध-न्याय के अध्याय पीछे से लिखे गये।

इस ग्रंथ के तैयार करने में मुझे बनारस संस्कृत कालेज के अध्यापक पं० जगनाथ उपाध्याय वेदान्ताचार्य तथा सारस्वती सुषमा के संपादक पं० प्रजवल्लभ दिवेदी दर्शनाचार्य से विशेष सहायता मिली है। उपाध्याय जी ने निधों को प्रथ का रूप देने में बड़ी सहायता की है। प्रफ देखने का सारा काम इन्हीं दो मित्रों ने किया है। मैं गत वर्ष योरप चला गया था और लौटने के बाद से निरन्तर बीमार चला जाता हूँ। सच तो यह है कि यदि इन मित्रों की