पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२३०

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बीब-धर्म-दर्शन वसुक्धु ने सदमपुण्डरीकसूत्र-शास्त्र नाम की टीका लिखी थी, जिसका अनुवाद बोधिचि और रत्नमति ने लगभग ई० ५०८ में चीनी-भाषा में किया था। चीन और जापान में सद्धर्म पुण्डरीक का कुमारजीव-कृत अनुवाद अधिक लोकप्रिय है और उसपर कई टीकायें लिखी गई है। ईसा के ६१५वें वर्ष में जापान के एक राजपुत्र शी-तोकु-ताय-शि ने इसी ग्रन्थ पर एक टीका लिखी थी, जो आज भी बड़े आदर से पड़ी जाती है । सद्धर्म-पुण्डरीक का रचनाकाल यद्यपि निश्चित नहीं है तथापि उसकी मिश्र-संस्कृत भाषा, स्तूप-पूजा और बुद्ध-भक्ति श्रादि का विशेष वर्णन देखकर यह कहा जा सकता है कि महावस्तु और ललित-विस्तर के बाद, किन्तु ईसा के प्रथम शतक के प्रारंभ में, इसकी रचना हुई है। इस अन्य के अन्तिम सात अध्याय बाद को जोड़े गए हैं। यदि हम इनका तथा अन्य क्षेपक-स्थलों का विचार न करें तो इस ग्रन्थ की रचना एक विशेष-पद्धति के अनुसार हुई मालूम पड़ती है । यह महायान-धर्म के विशेष-सिद्धान्तों की एक अच्छी भूमिका है । साहित्य की दृष्टि से भी यह एक उच्चकोटि का ग्रन्थ है, यद्यपि इसकी शैली श्राज के लोगों को नहीं पसन्द श्रावेगी । इसमें अतिशयोक्ति है; एक ही बात बार-बार दुहराई गई है। शैली संक्षिप्त न होकर विस्तार- बहुल है। सद्धर्म-पुण्डरीक में कुल २७ अध्याय हैं, जिन्हें 'परिवर्त' कहा जाता है । पहले निदान- परिवर्त में ग्रन्थ के निर्माण के विषय में कहा गया है कि यह ग्रन्थ 'वैपुल्यसूत्रराज' है। वैपुल्पसूत्रराज परमार्थनयावतारनिदंशम् । सद्धर्म-पुण्डरीकं सत्याय महापर्थ वक्ष्ये ॥ सूत्र का प्रारम्भ इस प्रकार होता है-एक समय भगवान् राजगृह में गृध्रकूट-पर्वत पर अनेक क्षीणामत्र, बोधिसत्व, देव, नाग, किन्नर, असुर और राजा मागध अजातशत्रु से परिवेष्टित हो 'महानिर्देश' नाम के धर्मपर्याय का उपदेश करके 'अनन्तनिर्देश-प्रतिष्ठान नामक समाधि में स्थित हुए। उस समय भावान् के उणीप-विवर से रश्मि प्रादुर्भूत हुई, जिससे सभी बुद्धक्षेत्र परिस्फुट हुए। इस आश्चर्य को देखकर मैत्रेय बोधिसत्व को ऐसा हुा---'अहो ! भगवान् का यह प्रातिहार्य किसी महानिमित्त को लेकर हुआ है।' मैत्रेय बोधिसत्व ने मंजुश्री बोधिसत्व से प्रार्थना की कि वे इसका रहस्य बतावें । मंजुश्री बोधिसत्व मे बताया कि महाधर्म का श्रवण कराने के हेतु, महाधर्म-वर्षा करने की इच्छा से, भगवान् यह प्रालि हार्य बता रहे हैं। पूर्व काल में भी चन्द्र, सूर्य, प्रदीप, नाम के तथागत हुए थे, उन्होंने भी श्रावकों को चतुरार्यसत्य-संप्रयुक्त प्रतीत्यसमुत्पाद-प्रवृत्त-धर्म का उपदेश दिया बो दुःख का समतिक्रम करनेवाला था और निर्वाण-पर्यवसागरी था। जो बोधिसत्व थे उन्हें पटपारमिताओं का तथा सर्वशनपर्यवसायी धर्म का उपदेश दिया। वे भी महानिर्देश नाम के धर्म-पर्याय का उपदेश करने पर ऐसे ही समाधिस्थ हुए थे। उस समय उनके भी उम्पीप-विवर से ऐसी ही रश्मि प्रादुर्भूत हुई थी और उसके बाद उहोंने सर्वबुद्धों के परिग्रह से युक्त, सर्व-बोधिमत्वों की प्रशंसा से समन्वित महावैपुल्यसूत्रान्त 'सद्धर्मपुण्डरीका का उपदेश किया था। श्राज भी भगवान् इस समाधि से व्युस्थित होने पर 'सद्धर्मपुण्डरीका का उपदेश करेंगे।