पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२३८

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बौर-धर्म-दर्शन प्रारंभ में 'स्वयम्भू' या 'आदिनाथ नाम के 'श्रादिबुद्ध' प्रकट हुए और उन्होंने समाधि से विश्व को निर्मित किया। उनके सत्व में से अवलोकितेश्वर की उत्पत्ति हुई, जिसके शरीर से देवों की सष्टि हुई। यहाँ हमें पुराणों का सा वर्णन दृष्टिगोचर होता है। मैत्रेयनाथ अपने महायान-सूत्रालंकार (६, ७७ ) में कहते हैं कि 'श्रादिबुद्ध' कोई नहीं है। इस खएडन से अनुमान होता है कि आदिबुद्ध की कल्पना ईसा की चौथी शती पहले की है। अक्लो- कितेश्वर भक्ति-सम्प्रदाय इस समय में खून प्रचलित था। इसका प्रमाण यह है कि चीनी पर्यटक फाहियान ने (बो ईसा की चौथी शती में भारत अाया था ) लंका से चीन जाते समय समुद्रप्रयास में तूफान से बचने के लिए अवलोकितेश्वर की प्रार्थना की थी। अवलोकितेश्वर के अनेक चित्र और मूर्तियां मिली है, जिनका समय ५ वीं शती के समीप का माना जाता है । इस पय-ग्रन्थ का तिब्बती अनुवाद नहीं मिलता है किन्तु गद्य कारण्ड-व्यूह का तिब्बती भाषान्तर ईस्वी सन् ६१६ में हुआ था, जिसमें श्रादिबुद्ध का उल्लेख नहीं है । कारएड-व्यूह में अवलोकितेश्वर की महाकरुणा के अनेक वर्णन हैं। वह अवीचि नरक में आकर नारकियों को दु.ख से बचाती है । यह प्रेत, भूत तथा राक्षसों को भी सुग्व पहुँचाती हैं। अक्लोकितेश्वर केवल करुणामूर्ति ही नहीं है। वह मष्टि का सथा भी है। उमका रूप विराट है । उसकी आँखों से मूर्य और चन्द्र, भ्र से महेश्वर, भुनायो से ब्रह्मान श्रादि देव, हृदय से नारायण, अन्त्य दन्तों से सरस्वती, मुख से मरुन् , पैरों से पृथिवी और पेट से वरुण उत्पन्न हुए हैं । उसकी उपासना स्वर्गापवर्ग की प्रापक है। काण्ड-व्यूह में हम तंत्र और मंत्रों को भी पाते हैं । “ॐ मणिपञ हूँ, यह षडक्षर मंत्र, जो भान भी ति-वर में प्रतिष्ठा प्राप्त है, पहली बार काण्ड-ब्यूह में मिलता है । कुछ विद्वानों के अनुसार मणिपझा अबलोकितेश्वर की अर्धागिनी है । इस प्रकार कारएड-व्यूह में हमें अादिवुद्ध, स्रष्टा-बुद्ध और मंत्र, तंत्रों से समन्वित बौद्धधर्म का और भक्तिमार्ग का दर्शन होता है । प्रक्षोभ्यम्यूह करुणा-पुण्डरीक-"अनोभ्यव्यूह" और "करुणा-पुण्डरीक" नाम के और दो सूत्र-ग्रन्थों में अनुक्रम से बुद्ध अक्षोभ्य और पयोत्तर के लोकों का वर्णन मिलता है। ये दोनो ग्रन्थ ईसा की चौथी शती के पहले चीनी भाषा में अनूदित हुए थे। बोधिसत्व अवलोकितेश्वर से सम्बद क बुद्ध है, जिन्हें अमिताभ कहते हैं। सुखापती-प्यूह-सुखावती-व्यूह नामक महायान सूत्र में बुद्ध अमिताभ के सुखावती लोक का वर्णन है । संस्कृत में इसके दो प्रन्थ उपलब्ध है । एक ग्रन्थ विस्तृत है और दूसरा संक्षिप्त । पहले का प्रकाशन और अंग्रेजी भाषान्तर मैक्समूलर ने, दूसरे का फ्रेंच-भाषान्तर भी जापानी विद्वानों ने किया। "पुण्य संभार की कल्पना सुखावती-व्यूह में अधिक प्रबल है। सुखावती, यह बौदों का नन्दनवन है जहां बुद्ध अमिताभ का, जिन्हे अमितायु भी कहते हैं, राज्य है। जो व्यक्ति पुण्यसभार को प्राप्त करके मृत्यु के समय बुद्ध अमिताभ का चिन्तन करता है वह इस खुबलोक