पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२३९

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ससम अध्याय को प्राप्त होता है । इस बुद्धलोक में नरक, प्रत, असुर और तिर्यञ्चलोक का अभाव है। वहाँ सदाकाल दिन है, रात्रि नहीं है । सुखावती में गर्भज जन्म नहीं है। वहाँ सभी सत्व, श्रीपपादुक है और कमलदल से उद्भुत होते हैं। यहां के सत्व पाप से सर्वथा विस्त है और प्रशा से संयुक्त है। दीर्घ सुखावती-व्यूह के कुल बारह भाषान्तर चीनी भाषा में हुए थे जिनमें से प्राज केवल पांच ही चीनी त्रिपिटक में उपलब्ध है। इनमें से सबसे पुराना भावान्तर ई. सन् १४७ और १८६ के बीच का है । संक्षिप्त सुम्वायती-ब्यूद् का चीनी-भावान्तर कुमारजीच, गुणभद्र, और शुश्रान च्वांग ने किया था । अमितायुान सूत्र नामक एक और ग्रन्थ चीनी भाषा में उपलब्ध है, जिसमें सुखावती को प्राप्त करने के लिए अनेक ध्यानों का वर्णन है। शताब्दियों से ये तीन ग्रन्थ चीन और जापान के अमितायु के उपासक-बौद्धों के पवित्र ग्रन्थ माने जाते हैं । वहाँ आज भी अमिद के नाम से अमितायु की पूजा प्रचलित है और जापान में जोडो-शु और शिन्- ये दो बौद्ध सम्प्रदाय केवल अमितायु के ही उपामक हैं । भाषबावतंसक-बोधिमय-उपासना का गरमकर्ष हम 'श्रार्ययुद्धावतंसका नाम के महायान सूत्र में पाते हैं। इस ग्रन्थ का उल्लेख महाव्युत्पत्ति (६५, ४ ) में भाता है। चीनी त्रिपिटक और तिम्बा कांजुर में अन्नंसक-माहित्य पाया जाता है। इस नाम का एक बौद्ध-निकाय ईसा का छठी शती में उत्पन्न हुआ । उसी का यह पवित्र-ग्रन्थ है। जापान का केगोन-( kegon ) निकाय भी इसे मान्यता देता है। चीनी परम्परा के अनुसार छः भिन्न-भिन्न अवतंसक-सूत्र थे, जिनमें लत्तीस हजार से लेकर एक लक्ष गाथाग्री का संग्रह है। इनमें से छास हजार गाथाश्री का चीनी- भाषान्तर बुद्धभद्र ने अन्य भिक्षुओं सहयोग से ई० ४१८ में किया था। शिक्षानन्द ने ४५००० गाथा-ग्रन्थ का भागान्तर सातवीं शती में किया था। तंसक-सूत्र मूल संस्कृत में अभी उपलब्ध नहीं है। किन्तु 'गण्ड-व्यूह-महायान' सूत्र नामक ग्रन्थ संस्कृत में मिला है जो चीनी अवतंसक सूत्र से मिलता जुलता है । इस ग्रन्थ का प्रकाशन डाक्टर सुजुकी ने कियोये से सन् १९३४ में किया था। गएड-ब्यूह-बोधिसत्व-उपासना के अध्ययन में गरब्यूह महायानसूत्र महत्वपूर्ण है। ग्रन्थ का प्रारंभ इस प्रकार है । एक समय भगवान् श्रावस्ती के जेतवन में महाव्यूह कूटागार में विहार करते थे। उनके साथ समन्तभद्र और मंजुश्री नादि प्रमुख पाँच हजार बोधिसत्व थे। ये सभी बोधिसत्व 'समन्तभद्र-बोधिसल्ल-चर्या में प्रतिष्ठित थे। वे सर्वज्ञाता ज्ञामामिलामी थे। उन्होंने इच्छा की कि भगवान उन्हें-'पूर्व-सर्वज्ञता प्रस्थान' आदि अनेक चर्याय तथा 'तथागत सर्वसत्व- देशना-नुशासनी प्रातिहार्य श्रादि अनेक प्रातिहार्य बतायें। तब भगवान् – सिंह विजृम्भित नाम की समाधि में समाहित हुए और उसी समय अवर्णनीय प्रातिहार्य दिखलायी पड़े। जिन्हें देखने के लिए आगे दिशाओं के सहसों बोधिसत्व वहां आकर उपस्थित हुए। वहां उपस्थित सभी बोधि- सत्वों ने इस महान् प्राणिहार्य को देखा। वहीं पर शारिपुत्र, मौद्गल्यायन, महाकाश्यप, श्रादि