पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गोर-धर्म-दरांग प्रमुख महाभावक उपस्थित थे। लेकिन वे इस अमृत प्रातिहार्य को देख न सके। जिस प्रकार गंगा महानदी के दोनों तीर पर सैकड़ों प्रेत तुत्पिपासा से पीड़ित होकर भ्रमण करते हैं किन्तु उस गंगानदी के जल को नहीं देख सकते, या देखते भी है तो उसे निरुदक और शुष्क हो देखते हैं, उसी प्रकार वे स्थविर महाश्रावक जेतवन में स्थिर होने पर भी सर्वशताविपक्षिक अविद्या के पटल के कारण तथा सर्वशता भूमि कुशलमूल के अपरिग्रह के कारण तथागत के उस महान् प्रातिहार्य को देख न सके। तब समन्तभद्र बोधिसत्व ने उस बोधिसत्य परिषद् को भगवान् के इस महान् समाधि और प्रातिहार्य का प्रकाशन और उपदेश किया। तब भगवान् ने उन बोधिसत्वों को सिंह-विम्मित-समाधि में संनियोजन करने के हेतु भूविवरान्तर के उर्णकोश से 'धर्मधातु समन्त द्वार विज्ञप्ति व्यध्वावभासः नामक रश्मि निधारित किया। जिससे दश दिशात्रों के सर्व लोक-धातु का अवमासन हुना। उन बोधिसत्वों ने बुद्धानुभाव से वहीं बैठकर दश दिशाओं के लोक-धात का विशद दर्शन किया । तब उन्होंने दश दिग-लोकधातु में सहस्रो बोधिसत्वों को देखा बो सर्वसत्यों को महाकरुणा से प्लावित करते थे । कोइ बोधिसत्व श्रमण रूप से,कोई ब्राह्मण रूप से, कोइ वाणक रूप से, कोई वैद्य, नर्तक या अन्य शिल्लाधार रूप से सर्व प्राम, निगम, नगर, जनपद, राष्ट्रों में अनन्त सत्वों के हित के लिए प्रवृत्त थे । सत्वपरिपाक विनय के हेतु से ये बोधिसत्वचर्या में प्रवृत्त थे। तब मंजुश्री बोधिसत्व भी अनेक देव, देवता और बोधिसत्वों के परिवार के साथ अपने बिहार से निकले और भगवान की पूजा करके सत्यपरिपाक के हेतु दक्षिणा पथ की ओर विहार करने लगे। तब श्रायुष्मान् शारिपुत्र ने बुद्धानुभाव से मंजुश्री बोधिसत्य की कृपा से इस विहार को देखा और भावान् को प्रणाम कर साठ भितुओं के साथ उन्होंने मंजुश्री बोधिसत्व का अनुगमन किया। प्रवास में शारिपुत्र ने मंजुश्रा बोधिसत्व के महान् विभूति की प्रशंसा की। जैसे जैसे शारिपुत्र उनका गुणकातन करत वैसे बैंस उन साठ भिक्षुओं के चित्त प्रसाद को प्राप्त होते थे। बुद्ध-धर्मों में उनके चित्त परिणत हुए। उन्होंने मंजुश्री के चरणों को प्रणाम किया और उनसे प्रार्थना की कि उनको भी इस बोधिसत्व-विभूति की प्राप्ति हो। तब मंजुश्री बोधिसत्व ने उन भिक्षुओं को कहा -भिक्षुओं । दश प्रकार के चित्तोत्पाद के समन्वागम से महायान-संप्रस्थित कुलपुत्र तथागतभूमि को प्राप्त होता है । सर्व-तथागत-दर्शन-. पर्युपासन और पूजा स्थान में, सर्वकुशल-मूलों के उपचय में, सर्वधर्म-पर्यषण में, सर्वबोधिसत्व- पारमिताप्रयोग में, सर्वबोधिसत्व-समाधि-परिनिष्पादन में, सर्व अध्यपरंपरावतार में, दशदिक्सर्व- बुद्धदेव-समुद्रस्फरणपरिशुद्धि में, सर्वसत्वधातुपरिपाक विनय में, सर्वक्षेत्रकल्प बोधिसत्वचाँनिहार में, सर्वबुद्धक्षेत्र परमाणुरजःसमपारमिताप्रयोग से एक एक करके सर्वसत्व धातुओं को परिमोचन करनेवाले बल के निष्पादन में जो कुलपुत्र प्रसादयुक्त चित्तोत्पाद करता वही तथागतभूमि को प्राप्त होता है मंजुश्री से इस धर्मनय को सुनकर वे मिनु-सर्वबुद्धविदर्शनासंगविषय' नाम के समाधि को प्राप्त हुए । उसके अनुभाव से उन्होंने दशदिशाओं के तथागतों का और सत्वों का