पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२४२

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बोधिसत्वचर्या के इस प्रालयकारक विरोध को मैं नहीं जान पाता हूँ। आयें ! श्राप मुके इसका उपदेश दें। श्रार्य सुधन के ये प्रश्न शून्यवाद और बोधिसत्व-यान के परस्पर संबन्ध के बारे में बहुत हो मार्मिक है । गोपा से उसे उत्तर नहीं मिला। कल्याणमित्र की खोज में घूमते-घूमते वह अन्त में समुद्रकच्छ नामक जनपद में वैरोचनव्यूहालंकार नामक बिहार के कूटागार में मैत्रेय बोधिसत्व के दर्शनार्य उपस्थित हुआ। उसने मैत्रेय का दर्शन किया और कहा-ऋार्य ! मैं अनुत्तरा-सम्यक् संबोधि में अभिसंपस्थित हूँ, किन्तु बोधिसत्वचर्या को नहीं जानता हूँ । श्रार्य ! आपके बारे में व्याकरण हुआ है कि श्राप सम्यक्-संबोधि में केवल एक-जातिप्रतिबद्ध हैं। प्रार्य ! जो एक-जातिप्रतिबद्ध है उसने सर्व बोधिसत्व-भूमियों को प्रास किया है, वह उस सर्वज्ञ ज्ञान-विषय में अभिषिक्त हुश्रा है जो सर्व-बुद्धधर्मों का प्रभव है । अार्ग ! अाप ही मुझे बोधिसत्वचर्या को बताने में समर्थ हैं। तब अार्य मैत्रेय ने श्रार्य सुधन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और बोधिचित्तोत्पाद का माहात्म्य बताकर कहा :-"कुलपुत्र ! तुम बोधिसत्वचा को जानने के लिए उत्सुक हो तो इस वैरोचनव्यूहालंकारगर्भ के महाक्ट के अभ्यन्तर में प्रवेश करके देखो। वहाँ तुम जानोगे कि किस प्रकार बोधिसत्वचर्या की पूर्ति होती है और उसकी परिनिष्पत्ति क्या है"। मैत्रेय के अनुभाव से सुधन ने उस कूटागार में विराट् दर्शन किया। सव मत्वन्नोकों के बुद्धों का और बोधिसत्वों का उसे दर्शन हुा । यह सारा वर्णन अत्यन्त रोमांचकारी है । धर्म के विकाग में, भक्ति-परम्परा में, बौद्धधर्म में, इन विराट् दर्शनों की बाढ़ सी श्रायी है; जिसका परम प्रकर्ग हम यहाँ देख सकते है । उसे देखकर सुधन स्तिमित हुआ। यह सारा प्रातिहार्य आर्य मैत्रेय का ही अनुभाव था । श्रार्य मैत्रेय ने उसे समाधि से उठाकर कहा :-- -कुलपुत्र ! यही धर्मों की धर्मता है। मायास्वप्रप्रतिभासोपम यह सारा विश्व है। कुलपुत्र ! तुमने अभी ओधिमन्व के सर्वत्र्य- ध्वारम्बणज्ञानप्रवेशासमोपस्मृतिव्यूह-गत' नाम के विमोक्ष को और उसके समाधि प्रीति मुम्न को प्राप्त किया है । कुलपुत्र ! जो तुमने अभी देखा वह न कहीं से अाया है न कहीं गया है। इसी प्रकार हे कुलपुत्र ! बोधिसत्वों की गति है । वह अचलनास्थान गति है । वह अनालया- निकेतन गति है, वह अच्यु-युपपत्ति गति है । वह अस्थासंक्रन्ति गति है। वह अचलनानुत्थान गति है। वह अकर्मविपाक गति है। वह अनुत्पादानिरोध गति है । वह अनुच्छेदाशाश्वत- गति है। ऐसा होने पर भी हे कुलपुत्र ! बोधिसत्व की गति महाकणा-गति है । महाभत्री- गति है, शीलगति है, प्रणिधानगति है, अनभिसंस्कार गति है, अनायूह-वियूह गति है, प्रशोपायगति है और निर्वाणसंदर्शनगति है। हे कुलपुत्र ! प्रज्ञापारमिता बोधिमल्दों की माता है, उपायकौशल्य पिता है, दानपारमिता स्तन्य है, शीलपारमिता धातृ है, क्षान्तिपार- मिता भूपण है, वीर्यपारमिता संवर्धिका है, ध्यानपारामता चर्याविशुद्धि है, कल्याणमित्र उसका शिक्षाचार्य है, बोध्यंग उसके सहायक हैं, बोधिसत्व उसके भाई हैं, बोधिचित्त उमका कुल है । इससे हे कुलपुत्र । बोधिमत्व वालपृथग्जनभूमि को अवक्रान्त करके तथागतभूमि में प्रतिपन्न होता है।