पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५

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भूमिका मित्रवर श्राचार्य नरेन्द्रदेव जी बहुत दिनों से बौद्ध-दर्शन की आलोचना कर रहे हैं। काशी विद्यापीठ श्रादि पत्रिकाओं में समय-समय पर बहुत ही तथ्यपूर्ण एवं मूल्यवान् निबन्ध लिखे हैं। वसुबन्धुक्त अभिधर्मकोश का पूस ने बो फ्रेंच अनुवाद किया था उसका श्राचार्यत्री कृत हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन कार्य प्रारम्भ हो गया है। बौद्ध-धर्म और दर्शन के विषय में राष्ट्रभाषामाषी जनता के ज्ञान के लिए यह एक उत्कृष्ट देन है । राजनीति-क्षेत्र में सदा व्यस्त रहने पर तथा शारीरिक अस्वस्थता से खिन्न रहते हुए भी उन्होंने बौद्ध-धर्म और दर्शन संबन्धी विभिन्न अङ्गों के परिशीलन में अपने समय का बहुत सा अंश विनियुक्त किया है । इसके फलस्वरूप बहुत दिनों के परिश्रम से उनके अनेक सारगर्भ निबन्ध और लेख संचित हुए हैं। यह अत्यन्त आनन्द का विषय है कि ये समस्त लेख व निबन्ध यथाप्रयोजन संशो- धित और परिवर्धित होकर एक सर्वाङ्ग-सुन्दर ग्रन्थ के रूप में विद्वत्समाज के समक्ष उपस्थित है। प्राचार्य जी के बहुत दिनों के सनिर्बन्ध अनुरोध की उपेक्षा करने में असमर्थ होने के कारण यान मैं इस ग्रन्थ के उपोद्घात के रूप में दो चार बाते कहने के लिए उद्यत हुश्रा हूँ। इस कार्य से मैं अपने को समानित समझता हूँ। समय के अमाव और स्थान के संकोच के कारण यथासंभव संक्षेप में ही बालोचना करनी पड़ेगी। यह कहना ही चाहिये कि ऐसा ग्रन्थ हिन्दी भाषा में तो नहीं है, किसी भारतीय भाषा में भी नहीं है । मैं समझता हूँ कि किसी विदेशी भाषा में भी ऐसा ग्रन्थ नहीं है । बौद्ध दर्शन के मूल दार्शनिक अन्य अत्यन्त कठिन एवं दुरूह है। प्राचार्य जी ने घोर परिश्रम कर के उसकी विभिन्न शाखाओं के अन्यों का श्राद्योपान्त अध्ययन कर इस ग्रन्थ में मुख्य मुख्य विषयों का आक्षेप-समाधानपूर्वक विस्तृत विवेचन क्रिया है। किसी टीकाकार की प्रसिद्ध उक्ति के अनुसार प्राचार्य जी ने कुछ भी अनपेक्षित एवं अमूल नहीं लिखा है। उन्होंने ग्रन्थ की प्रामाणिकता के रक्षार्थ मूल ग्रन्थों से प्रत्यक्ष संबन्ध रखा है। पाठक को बौद्ध-धर्म और दर्शन की मूल भावनाओं ए वातावरण से परिचित करने के लिए उन्होंने बौद्धो के शब्द तथा शैली को भी इस ग्रन्थ में पूर्ण सुरक्षित रखा है। विभिन्न प्रस्थानों के कुछ विशिष्ट मूल ग्रन्थों का संक्षेप दे देने से इस प्रन्थ की उपादेयता श्री: बढ़ गयी है। दर्शन के प्रामाणिक अध्ययन के लिए इस प्रणाली को मैं सर्वश्रेष्ठ समझता हूँ | इस प्रकार यह ग्रन्थ इस विषय की उच्च कक्षा के विद्यार्थियों के लिए ही उपादेय नहीं है, प्रत्युत इससे इतर भारतीय दर्शन के विद्वानों को भी प्रचुर सहायता मिलेगी। बौद्ध दर्शन के उपलब्ध संस्कृत ग्रन्थों में भी कोई एक ऐसा प्रन्ध नहीं है, जिसके द्वारा बौद्धों की समस्त शाग्वानों के सिद्धान्त का ज्ञान हो। ऐसे अन्य