पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५०

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बोड-धर्म-दर्शन लकावतार-सूत्र के चीनी में तीन भाषान्तर हुए हैं। ई० सन् ४४३ में गुणभद्र ने, ई०५१३ में बोधिरुचि ने और ई०७००-७०४ में शिदानन्द ने इसके चीनी अनुवाद किये थे, बो उपलब्ध है । इस ग्रन्थ का संपादन 'बुयिड नजियो' ने क्योटो ( जापान ) से १६२५ में किया है । डा. सुजूकी ने इस ग्रन्थ पर विशेष अभ्ययनपूर्ण ग्रन्थ भी लिया है। लकावतार-सूत्र का अर्थ है लंकाधीश रावण को सद्धर्म का उपदेश । इस ग्रन्थ के कुल दश परिवर्त है। प्रथम परिवर्त में लंका के राक्षमाधिपति रावण का बुद्ध से संभाषण है । बोधि- सत्व महामति के कहने पर रावण भगवान से धर्म और अधर्म के संबन्ध में प्रश्न करता है । द्वितीय परिवर्त में महामति बोधिसत्व भगवान् से एक सौ प्रश्न पूछता है। प्राय: ये सभी प्रश्न मल सिद्धान्त से सम्बन्धित हैं । निर्वाण, संमार-बन्धन, मुक्ति, श्रालय ज्ञान, मनोविज्ञान, श-पा आदि गंभीर विषयों के बारे में तथा चक्रवर्ति. माण्डलिक, शाक्यवंश आदि के पारे में भी ये प्रश्न है। तृतीय परिवन में कहा गया है कि तथागत ने जिम रात्रि को सम्पक संबोधि की प्राप्ति की और जिम रात्रि को महापरिनिर्वाण की प्राप्ति की उसके बीच उन्होंने एक शल का भी उच्चारण नहीं किया है। यह भगवान के उपदेश का लोपोनर-स्वभाव है । इसी परिवत में कहा गया है कि जिम प्रकार एक ही वस्तु के अनेक नाम उपयुक्त होते हैं उसी प्रकार बुद्ध के असंख्य नाम है। कोई उन्हें तथागत करते है. तो कोई मरम्भ, नायक, विनायक, परिणायक, बुद्ध, ऋषि, वृषभ, ब्राहाण, विष्णु, ईश्वर. प्रधान, कपिल, भूतान्त, भास्कर, अरिष्टनेमि, राम, व्यास, शुक्र, इन्द्र, बलि, वरुण श्रादि नामों से पुकारते हैं । उन्हें ही अनि रोधानुत्पाद, शून्यता, तथता, सत्य, धर्मधातु और निर्वाण; ये संज्ञायें दी गई हैं। दूसरे से मानव परिवर्त तक विज्ञानवाद के सूक्ष्म सिद्धान्तों की चर्चा है । अष्टम परिवर्त में मांसाशन का निषेध है। हीनयान के विनयपिटक में त्रिकोटि-परिशुद्ध मांस का विधान है, किन्तु महायान में मामाशन वर्जित है। इसका प्रथम दर्शन हमें लंकावतार-सूत्र में मिलता है | नवम परिरात में अनेक धार गियों का वर्णन है । अन्तिम दशम परिवन में ८८४ श्लोकों में विज्ञानवाद में स्नान है, जो श्रागे के दार्शनिक विज्ञानवाद के लिये भित्तिरूप है । दशवे परिवर्त में कुछ स्थल पर भविष्य के बारे में गाकरण है। मान कहा है कि उनके परिनिर्वाण के बाद व्यास, कणाद, ऋषभ, कपिल आदि उत्पन्न होगे । निर्वाग के एक सौ वर्ष बाद व्यास, कौरव, पाण्डव, राम और मौर्य ( चन्द्रगुप्त ) होंगे और उनके बाद नन्द, गुप्त राज्य करेंगे । उसके बाद-म्लेच्छों का राज्य होगा जब कलियुग का भी प्रारंभ होगा और शासन वृद्धिंगत न होगा। श्रन्य एक स्थल पर पाणिनि, अक्षपाद, वृहस्पति ( लोकायत के आचार्य), कात्यायन, याज्ञवल्क्य, वाल्मीकि, कौटिल्य और श्राश्वलायन श्रादि ऋषियों के बारे में व्याकरण है। इन व्याकरणों से विद्वानों ने निर्णय किया है कि लकावतार का यह दशम परिवर्त पाले का अर्थात् उत्तर-गुप्तकाल का है और उसका विज्ञानवाद सम्बन्धी भाग योगाचार के संस्थापक आर्य मैत्रेयनाथ के समय का अर्थात् चौथी शती का है।