पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५६

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बोड-धर्म-दर्शन चन्द्रकीर्ति छठी शताब्दी के हैं। यह मध्यमकावतार और प्रसन्नपदा के रचयिता है। नागार्जुन के बाद का विस्तृत परिचय इस ग्रन्थ के चतुर्थ खण्ड में देंगे। पार्यदेव-नागार्जुन के शिष्य आर्यदेव भी एक प्रसिद्ध शास्त्रकार हो गये हैं। इन्हें देव, काणदेव या नीलनेत्र भी कहते हैं। शुश्रान-च्चांग के अनुसार यह सिंहल देश से आये थे । कुमारजीव ने इनकी बीवनी का अनुवाद चीनी भाषा में किया था । अार्यदेव का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ चतुः शतक है। इसमें ४०० कारिकायें हैं। चन्द्रकीर्ति के ग्रन्थ में शतक या शतक-शास्त्र के नाम से इसका उल्लेख है। शुमान-याङ्ग ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया था । इनका एक दूसरा ग्रन्थ 'चित्तविशुद्धि-प्रकरण' बताया जाता है। इसके कुछ ही भाग मिले हैं। विन्टर नित्ज को इसमें सन्देह है कि यह ग्रन्थ आर्यदेव का है । चीनी त्रिपिटक में दो ग्रन्थ हैं, जिनका अनुवाद बोधिसत्त्व (५०८-५३५ ई.) ने किया है और जो आर्यदेव के बताये जाते हैं। श्रार्यदेव का एक अन्य मुष्टि-प्रकरण है, जिसके संस्कृत-पाठ का निर्माण शामस ने चीनी और तिब्बती अनुवादों की सहायता से किया है । प्रसंग, वसुबंधु-अब तक यह समझा जाता था कि योगाचार-विज्ञानवाद के प्रतिष्टापक कार्यासंग थे। परंपरा के अनुसार अनागत बुद्ध मैत्रेग ने तुमित-लोक में असंग को कई ग्रन्थ प्रकाशित किये थे । किन्तु अब इस लोक-कथा का व्याख्यान इस प्रकार किया जाता है कि जिन ग्रन्थों के सम्बन्ध में ऐसी उक्ति है, वह वस्तुतः असंग के गुरु मैत्रेय नाथ की रचना है। अब इसकी अधिक संभावना है कि मैत्रेयनाथ योगाचार मतबाद के प्रतिष्ठापक थे । कम से कम श्रय यह निश्चित हो गया है कि अभिसमयालंकार कारिका मैत्रेयनाथ को कृति है । यह ग्रन्थ पंचविंश- तिसाहसिका-प्रज्ञापारमिता सूत्र की टीका है। यह टीका योगाचार की दृष्टि से लिखी गया है । विन्टर नित्ज का कहना है कि महायानसूत्रालंकार के भी रचयिता संभवतः मैत्रेयनाथ थे । सिलवां लेबी ने इस ग्रन्थ का सम्पादन और अनुवाद किया है। उनका मत है कि यह ग्रन्थ श्रसंग का है । एक और ग्रन्थ 'योगाचारभूमिशान्त्र' या 'सप्तदशभूमिशास्त्र' है जिमका केवल एक भाग अर्थात् बोधिसत्त्यभूमि मस्कृत में मिलता है। इसके सम्बन्ध में भी कहा जाता है कि मैत्रेय ने इसको असंग के लिये प्रकाशित किया था। विन्टर निन्ज का कहना है कि यह भी प्रायः मैत्रेयनाथ की रचना है। किन्तु तिब्बती लेख इस ग्रन्थ को असंग का बताते हैं । शुमान चांग का भी यही मत है । जो कुछ हो, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि योगाचार-विज्ञानवाद के प्राचार्य के रूप में मैत्रेयनाथ की अपेक्षा असंग की अधिक प्रसिद्धि है । इनके अन्थों का परिचय चीनी अनुवादों से मिलता है—महायान-संपरिग्रह, निसका अनुवाद परमार्थ ने किया; प्रकरण- श्रार्ययाचा, महायानाभिधर्म-संगीति-शास्त्र जिसका अनुवाद शुश्रान चाङ्ग ने किया, वज्रन्छेदिका की टीका, जिसका अनुवाद धर्मगुप्त ने किया। श्रसंग तीन भाई थे। असंग ही सबसे बड़े थे। इनका जन्म पुरुषपुर ( पेशावर ) में ब्राह्मण-कुल में हुआ था। इनका गोत्र कौशिक था । इनसे छोटे वसुवन्धु थे । बौद्धसाहित्य में इनका ऊँचा स्थान है । प्रारंभ में दोनों भाई सास्तिवाद के अनुयायी थे। अभिधर्मनोश के देखने से मालूम होता है कि यमुबन्धु स्वतंत्र विचारक थे। किन्तु उनका मुकाव सौत्रान्तिक