पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भरम मध्याय मतवाद की अोर था। पीछे से असंग ने महायान-धर्म स्वीकार कर लिया और उनकी प्रेरणा से वसुवन्धु भी महायान के माननेवाले हो गये। ताकाकुसू के अनुसार चमुबन्धु का काल ४२० ई. और ५०० ई. के बीच है। बोगिहारा वसुबन्धु का समय ३६० ई. और ४७० ई० के बीच तथा असंग का समय ३७५ ई. और ४५० ई. के बीच निर्धारित करते हैं। सिलवा लेवी के अनुमार असंग का काल ५वीं शताब्दी का पूर्वार्धभाग है । किन्तु एन० पेरी ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि वसुबन्धु का जन्म ३५० ई. के लगभग हुा । इममे विन्टर नितज् दोनों भाइयों का समय चौथी शताब्दी मानते हैं। परमार्थ ने यसुबन्धु की जीवनी लिम्बी थी। परमार्थ का समय ४६E-५६६ ई. है। ताकाकूसू ने चीनी से इसका अनुवाद किया है । तारानाथ के इतिहास में भी वसुबन्धु की जीवनी मिलती है, किन्तु यह प्रामाणिक नहीं है । बमुवन्धु का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ अभिधर्म- कोश है। इसके चीनी और निवती अनुवाद उपलब्ध हैं । लुई द ला वाले पूसे ने चीनी से फ्रैंच में मानवाद किया। राहुल सांकृत्यायन तिब्बत से मूल संस्कृत-ग्रन्थ का फोटो लाये थे। जायसवाल-अनुशीलन-संस्था पटना की ओर से मुल प्रन्य के प्रकाशित करने की व्यवस्था की जा रही है । चीनी भाषा में इस ग्रन्थ के दो अनुवाद है-एक परमार्थ का, दूसरा शुश्नान-च्चाङ्ग का। परमार्थ का अनुवाद ५६३ ई. का है। इस ग्रन्थ में ६०० कारिकायें हैं और वसुबन्धु इसका स्वयं भाष्य लिया है। इस ग्रन्थ का द्ध-जगत् पर बड़ा व्यापक प्रभाव पड़ा। सब निकायों में तथा सर्वत्र इसका श्रादर हुथा। इसने बहुत शीघ्र अन्य प्राचीन ग्रन्थों का स्थान ले लिया। यह बड़े महत्त्व का ग्रन्थ है। वसुबन्धु के अनुसार अभिधर्मकोश में वैभाषिक- सिद्धान्त का निरूपण काश्मीर-नय से किया गया है। कोश के प्रकाशित होने पर सर्वास्तिवाद के प्राचीन ग्रन्थों ( अभिधर्म और विभाषा) का मन्त्र घट गया । कोश में वैभाषिक-सौत्रान्तिक का विवाद भी दिया गया है; अन्त में ग्रन्थकार अपना मत भी दे हैं। कोश में अन्य ग्रन्थों से उद्धरण भी दिये गये हैं। इस प्रकार प्राचीन साहित्य के अध्ययन के लिये भी कोश का बड़ा मूल्य है। श्रभिधर्म कोश पर कई टीकायें लिखी गयी थी, किन्तु केवल यशोमित्र की स्फुटार्था' व्याख्या पायी जाती है। इसका मंपादन योगिहारा ने जापान से किया है। कलकत्ते से देव- नागरी अक्षरों में यह ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। दिङ् नाग, स्थिरमति, गुणमति श्रादि ने भी कोशपर टीकायें लिखी है-- मर्मप्रदीप, तत्त्वार्थटोका, लक्षणानुसार श्रादि । चीनी भाषा में भी कोश पर कई टीकार्य है। संघभद्र ने न्यायानुसार नाम का अभिधर्मशास्त्र वसुबन्धु के मत का खण्डन करने तथा यह बताने के लिए लिखा कि कहाँ वसुबन्धु शास्त्र से व्यावृत्त करते हैं; न्यायानुसार अभिधर्मकोश की बालोचनात्मक टीका है । जहाँ जहां वसुबन्धु का भाष्य वैभाषिक मत का विरोध करता है, वहां वहाँ न्यायानुसार उसका ग्वएडन करता है।