पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५८

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बौद्ध धर्म-दर्शन वृद्धावस्था में वसुबन्धु ने असंग के प्रभाव से महायान-धर्म स्वीकार किया और विंशतिका और त्रिंशिका नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ रचे । यह विज्ञानवाद के ग्रन्थ है। विंशतिका पर वसुबन्ध ने अपनी वृत्ति लिखी । त्रिशिका पर १० टीकायें थीं। इनमें से केवल स्थिरमति की टीका उपलब्ध है । शुश्रान-च्याङ् ने त्रिंशिका पर विज्ञप्तिमात्रता सिद्धि नामक ग्रन्थ चीनी भाषा में लिखा । पूरों ने इस ग्रन्थ का फ्रेंच में अनुवाद प्रकाशित किया है। यह ग्रन्थ बड़े महत्त्व का है, क्योंकि इसमें त्रिशिका के मब टीकाकारों के मत का निरूपण है और धर्मपाल की टीका भी सन्निविष्ट है। वसुबन्धु ने अन्य भी प्रन्थ लिखे थे, जो अप्राप्त है। विश्वभारती से विस्वभाव-निर्देश नाम का मन्थ प्रकाशित हुअा है । इसके रचयिता वसुबन्धु बताये जाते है । बमुबन्धु के कुछ अन्य ग्रन्थ यह है:-पंचस्कन्धप्रकरण, व्याख्यायुक्ति और कर्मसिद्धिप्रकरण । बमुबन्धु की मृत्यु ८० वर्ष की अवस्था में अयोध्या में हुई । इस ग्रन्थ के चतुर्थ खण्ड में हम अमंग के विज्ञानवाद का, वसुबन्धु के वैमापिकवाद तथा विज्ञानवाद का विस्तृत परिचय देंगे। दिनाग, धर्मकीर्ति और अन्य प्राचार्य-यानार्य असंग और वसुबन्धु के दो प्रधान शिष्य दिङ्नाग ( या दिग्नाग ) और स्थिरमति थे । स्थिरमति माध्यमिक और विज्ञानवाद के बीच की कड़ी हैं। विज्ञानवाद की दूसरी शास्त्रा के प्रतिष्ठापक दिङ्नाग हैं । इस शाम्बा का माध्यमिक से सर्वथा विच्छेद हो गया। इस शाग्वा का केन्द्र नालन्दा था। दिङ्नाग बौद्धन्याय के प्रतिष्ठापक माने जाते हैं। भारतीय दर्शन में इनका ऊँना स्थान है। इनके ग्रन्थों में न्याय- प्रवेश, पालम्धन-परीक्षा प्राप्त हैं। इनके प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रमाणगमुच्चय का प्रत्यक्ष परिच्छेद भी प्रकाशित हो चुका है। अन्य ग्रन्थों के भी तिब्बती अनुवाद उपलब्ध हैं | दिङ नाग के पश्चात् धर्मकीर्ति ( ६७५-७०० ई.) हुए जिनका न्यायविन्दु, हेनुविन्दु और प्रमाणचार्निक संस्कृत में उपलब्ध हैं। शुश्रान् च्यांग ने नालन्दा संघाराम में अध्ययन किया था और शालभद्र उनके अाचार्य थे। विज्ञानवाद के अन्य प्राचार्य जयसेन तथा चन्द्रगोमिन् ( मातवीं शती ) थे। यह एक प्रसिद्ध वैयाकरण, दार्शनिक और कवि थे । तारानाथ के अनुसार चन्द्रगामिन् ने अनेक स्तोत्र और अन्य ग्रंथ रचे । यद अमन्दिग्य है कि सातवीं शती में विज्ञानवाद का बड़ा प्रभाव था। पीछे के माध्यमिक श्राचार्यों का विज्ञानवाट के प्राचार्यों से बड़ा शास्त्रार्थ होता था। यद्यपि माध्यमिक विज्ञानवादियों के पूर्ववर्ती हैं, तथापि बौद्धधर्म के तिब्बती और चीनी इतिहासों में योगाचार-विज्ञानवाद को प्राय. हीनयान और माध्यमिक के बीच की कड़ी माना गया है। उनके अनुसार माध्यमिकों का बाद पूर्ण है । नालन्दा के एक प्रसिद्ध श्राचार्य वर्मपाल थे, जिन्होंने विशिका पर टीका लिखी थी । इनके शिष्य चन्द्रकीर्ति ने मामिक दर्शन पर अनेक ग्रन्थ लिखे । चन्द्रकीर्ति ने बुद्धपालित और भव्य के शिष्य कमलबुद्धि से नागार्जुन के ग्रन्थों का अध्ययन किया था। बुद्धपालित प्रासंगिक-निकाय के प्रतिष्ठापक हैं और भावविवेक ( भव्य ) ने सातन्त्र निकाय की स्थापना की थी। इनके प्रन्यों के केवल तिब्बती अनुवाद मिलते हैं । चन्द्रकीर्ति का मुख्य ग्रन्थ मध्यमकावतार है। मूल मन्यमककारिका पर प्रसन्नपदा नाम की टीका भी चन्द्रकीर्ति की है। इन्होंने चतुः-