पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२५९

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अष्टम अध्याय शतिका पर भी एक टीका लिखी, जो बहुन प्रसिद्ध है। ये ग्रन्थ चन्द्रकीर्ति की अपूर्व विद्वत्ता के प्रमाण हैं। शान्तिदेव-शान्तिदेव सातवीं शताब्दी में हुए | तारानाथ के अनुमार शान्तिदेव का जन्म सौराष्ट्र ( = वर्तमान गुजगत ) में हुअा था, और वह श्रीहर्ष के पुत्र शील के समकालीन थे। परन्तु भाग्नीय अथवा चीनी लेग्लों में अथवा शील किमी अन्य नाम के पुत्र का पता नहीं चलता | शान्तिदेव राजपुत्र था, पर तारा की प्रेरणा से उसने गव्य का परित्याग किया। कहा जाता है कि स्वयं बोधिसत्व मंजुश्री ने योगी के रूप में उसको दीक्षा दी और अन्त में वह भिक्षु में गया। तारानाथ के अनुसार शान्तिदेव बोधिचर्याक्तार, सूत्रसमुच्चय, और शिक्षासमुच्चय के चयिता थे । बोधिचर्यावतार औरों में पीछे लिग्बी गयी। शिक्षासमुच्चय की जो हस्तलिखित पतियां प्राप्त हुई हैं, उनमें ग्रन्धकार का नाम नहीं पाया जाता है, पर तंबोर इण्डेक्स ३१ के अनुमार शान्तिदेव ही इम ग्रन्थ के रचयिता हैं । महायान धर्म के विद्वान् टीपंकर श्रीमान 'अतीश ) इम उक्ति की पुष्टि करते हैं। शिक्षासमुच्चय के अनेक अंशों का उद्धरण उन्होंने । न्या है । या. ग. ग्रन्थ को बह शान्तिदेही की कृति समझते थे । बोधिचर्यावतार के टीकाकार प्रज्ञाकानि भी शान्तिदेव ही को शिक्षासमुच्चय तथा यो। चरितार का ग्रन्थकार मानते हैं। दोनों ग्रन्थ एक ही व्यक्ति की कृतियाँ हैं। इसका अन्त- रंग . भाग भी है । दोनों ग्रन्थों में कई श्लोक सामान्य हैं। इसके अतिरिक्त बोधिचर्यावतार (पंचा परिच्छेद, श्लोक १०५, १०६) में शिक्षासभुत्त्रय अथवा सूत्रसमुच्चय के बारम्बार अभ्यास रने का आदेश किया गया है । शिक्षासमुच्चयोऽवश्वं द्रव्यश्च पुनः पुनः । विस्तरेण सदाचारी यस्मात्तत्र संक्षेपेगाथवा तावत्पश्येत्सूत्रसमुच्चयः । यदि । बासमुच्चय के रचयिता बोधि-चवितार के रचयिता से भिन्न होते तो यह मानना पड़ता कि एक . दूमर के शतकों की चोरी की है और उस अवस्था में जिस ग्रन्थ से चोरी की गयी है उस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं पाया जाता । अतः स्पष्ट है; दोनों ग्रन्थों के कर्ता शान्तिदेव ही हैं। प्रशाकरमति अपनी बोधि- पर्यावतारपंजिका में ऊपर उद्धृत किए हुए श्लोकों की टोका में लिखते हैं शिक्षासमुच्चयोऽपि स्वयमे भिरेव कृतः । तदा | नानासूत्रकदेशानाँ वा समुच्चय एभिरेव कृतः । बोधिचर्यावतार में आर्य नागार्जुन द्वारा लिखे हुए एक दूसरे सूत्रसमुच्चय का उल्लेख पाया जाता है। अार्यनागार्जुनाबद्धं द्वितीयं च प्रयत्नतः प्रज्ञाकरमति के अनुसार श्रार्य नागार्जुन के लिखे हुए शिक्षासमुच्चय और सूत्र- समुच्चय है। टीका-आर्यनागार्जुनपादेर्निबद्धं द्वितीय शिक्षासमुच्चयं सूत्रसमुच्चर्य, च पश्येत् प्रयत्नतः श्रादरतः । प्रदर्शितः॥