पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२६९

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पशम अध्याय उसने तापस-प्रव्रज्या की। एक दिन उसने विचार किया कि पुनर्भव दुःख है; मैं उस मार्ग का अन्वेषण करता हूँ, जिस पर चलने से भव से मुक्ति मिलती है । ऐसा मार्ग अवश्य है । जिस प्रकार लोक में दुःख का प्रतिपक्ष सुख है, उसी प्रकार भव का भी प्रतिपक्ष विभव होना चाहिये। जिस प्रकार उष्ण का उपशम शीत है, उसी प्रकार रागादि दोष का उपशम निर्वाण है । ऐसा विचार कर सुमेध तापस हिमालय में पणकुटी बनाकर रहने लगे। उस समय लोकनायक दीपंकर- बुद्ध संसार में धर्मोपदेश करते थे । एक दिन सुमेधःतापस श्राश्रम से निकलकर श्राकाश-मार्ग से जा रहे थे, देखा कि लोग नगर को अलंकृत कर रहे हैं, भूमि को समतल कर रहे हैं, उस पर बालुका श्राकीर्ण कर लाज और पुष्प विकीर्ण कर रहे हैं, नाना रंग के वस्त्रों की ध्वजा-पताका का उत्सर्ग कर रहे हैं और कदली तथा पूर्ण घर की पकि प्रतिष्ठित कर रहे हैं । यह देखकर सुमेध श्राकाश से उतर और लोगों से पूछा कि किस लिए माग-शोधन हो रहा है । सुमेध को प्रीति उत्पन्न हुई और बुद्ध-बुद्ध कहकर वे बड़े प्रसन्न हुए । सुमेध भी मार्ग-शोधन करने लगे । इतने में दीपंकर बुद्ध श्रा गए । भेरी बजने लगी। मनुष्य और देवता साधु-साधु कहने लगे । आकाश से मंदार पुष्पों की वर्षा होने लगी। सुमेव अपनी जा खोलकर, बल्कल, चीर और चर्म विमा, भूमि पर लेट गए, और यह विचार किया कि यदि दीपंकर मेरे शरीर को अपने चरणकमल से स्पर्श करें तो मेरा हित हो । लेटे-लेटे उन्होंने दीपंकर की बुद्धश्री को देखा और चिन्ता करने लगे कि सर्वनेश का नाश कर निर्वाण-प्राप्ति से मेरा उपकार न होगा मुझको यह अच्छा मालूम होता है कि मैं भी दीपंकर की तरह परम संबोधि प्राप्त कर अनेक जीवों को धर्म की नौका पर चढ़ा कर संसार-सागर के पार ले जाऊँ,और पश्चात् स्वयं परिनिर्वाण में प्रवेश करूं । यह विचार कर उन्होंने 'बुद्धभाव' के लिए उत्कट अभिलाषा (पालि, अभिनीहार) प्रकट थी। दीपंकर के समीप सुमेव ने बुद्धत्व की प्रार्थना की और ऐमा दृढ़ विचार किया कि बुद्धों के लिए मैं अपना जीवन भी परित्याग करने को उद्यत हूँ। इस प्रकार सुमेध अधिकार सम्पन्न हुए। दीपंकर पास श्राकर बोले -इस जटिल तापस को देखो। यह एक दिन बुद्ध होगा यह बुद्ध का 'व्याकरण हुश्रा । 'यह एक दिन बुद्ध होगा' इस वचन को सुनकर देवता और मनुष्य प्रसन्न हुए, और बोले-~-यह 'बुद्धबीज' है, यह 'बुद्धांकुर' है। वहाँ पर जो 'जिन-पुत्र' (बुद्ध-पुत्र) थे, उन्होंने सुमेध की प्रदक्षिणा की; लोगों ने कहा- तुम निश्चय ही बुट होगे। दृढ़ पराक्रम करो, आगे बढ़ो, पीछे न हो । सुमेव ने सोचा कि बुद्ध का वचन अमोघ होगा। बुद्धत्व की नाकांक्षा की सफलता के लिए सुमेध बुद्धकारक धर्मों का अन्वेषण करने लगे, और महान् उत्साह प्रदर्शित किया । अन्वेषण करने से १. पारमितायें प्रकट हुई, चिनका श्रासेवन पूर्वकाल में बोधिसत्यों ने किया था। इन्हीं के ग्रहण से बुद्धत्व की प्राप्ति होगी 'पारमिता' का अर्थ है 'पूर्णता; पालिरूप 'पारमी' है । दश पारमितायें ये हैं :---दान, शील नैकम्य, प्रशा, वीर्य, क्षान्ति, सत्य, अधिष्ठान (दृढ़ निश्चय ), मैत्रो ( अहित.'और हित में